योग दर्शन में अनुमान प्रमाण की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
||||
योग दर्शन में अनुमान प्रमाण की अवधारणा |
योग दर्शन में अनुमान प्रमाण की अवधारणा
अनुमान प्रमाण
लक्षण देखकर जिस किसी वस्तु का ज्ञान होता है, उसे अनुमान
कहते हैं। यहाँ अनुमान दो प्रकार के माने गए हैं
- वीत अनुमान
- अवीत अनुमान
वीत अनुमान
वीत अनुमान उसे कहते हैं, जो पूर्णव्यापी
भावात्मक वाक्य पर अवलम्बित रहता है। वीत अनुमान के दो भेद माने गए हैं-
- पूर्ववत्
अनुमान
- सामान्यतोदृष्ट
अनुमान
पूर्ववत् अनुमान
पूर्ववत् अनुमान उसे कहते हैं, जो दो
वस्तुओं के बीच व्याप्ति-सम्बन्ध पर आधारित
है। धुआँ और आग दो ऐसी वस्तुएँ हैं, जिनके बीच व्याप्ति-सम्बन्ध
निहित है। इसलिए धुआँ को देखकर आग का अनुमान किया जाता है।
सामान्यतोदृष्ट अनुमान
सामान्यतोदृष्ट अनुमान वह अनुमान, जो हेतु
और साध्य के बीच व्याप्ति-सम्बन्ध पर निर्भर
नहीं करता है, सामान्यतोदृष्ट अनुमान कहलाता है। इस अनुमान का उदाहरण निम्नांकित
है-
आत्मा के ज्ञान के द्वारा प्रत्यक्ष किसी व्यक्ति को नहीं होता है, परन्तु
हमें आत्मा के सुख, दुःख, इच्छा इत्यादि गुणों का प्रत्यक्षीकरण होता है। इन गुणों के प्रत्यक्षीकरण
के आधार पर आत्मा का ज्ञान होता है। ये गुण अभौतिक हैं। अत: इन गुणों
का आधार भी अभौतिक सत्ता होगी। वह अभौतिक सत्ता आत्मा ही है।
अवीत अनुमान
पतंजलि के प्रमाण सिद्धान्त के अन्तर्गत अनुमान प्रमाण का दूसरा
प्रकार अवीत अनुमान है। अवीत अनुमान उस अनुमान को कहा जाता है, जोकि
पूर्वव्यापी निषेधात्मक वाक्य पर आधारित रहता है। इस दर्शन में भी पंचावयव अनुमान की
प्रधानता दी गई है।
---------
Comments
Post a Comment