योग दर्शन में शब्द प्रमाण की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
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योग दर्शन में शब्द प्रमाण की अवधारणा |
योग दर्शन में शब्द प्रमाण की अवधारणा
शब्द प्रमाण
पतंजलि ने शब्द को तीसरा प्रमाण माना है। किसी विश्वसनीय व्यक्ति
से प्राप्त ज्ञान को शब्द कहा जाता है। विश्वास योग्य व्यक्ति के कथनों को 'आप्त
वचन'
कहा
जाता है। आप्त वचन ही शब्द है। शब्द दो प्रकार के होते हैं
- लौकिक शब्द
- वैदिक शब्द
लौकिक शब्द
साधारण विश्वसनीय व्यक्तियों के आप्त वचन को लौकिक शब्द कहा जाता
है। श्रुतियों वेद के वाक्य द्वारा प्राप्त ज्ञान को वैदिक शब्द कहा जाता है। लौकिक
शब्दों को स्वतन्त्र प्रमाण नहीं माना जाता, क्योंकि वे प्रत्यक्ष
और अनुमान पर आश्रित हैं। इसके विपरीत वैदिक शब्द अत्यधिक प्रामाणिक हैं, क्योंकि
वे शाश्वत सत्यों का प्रकाशन करते हैं।
वैदिक वाक्य
वेद में जो कुछ भी कहा गया है, वह ऋषियों
की अन्तर्दृष्टि पर आधारित है। वैदिक वाक्य स्वतः प्रमाणित है। वेद अपौरुषेय हैं। वे
किसी व्यक्ति-विशेष की रचना नहीं हैं, जिसके फलस्वरूप
वेद लौकिक शब्द के दोषों से मुक्त हैं। वैदिक शब्द सभी प्रकार के वाद-विवादों
से मुक्त हैं। इस प्रकार, पतंजलि प्रत्यक्ष, अनुमान
और शब्द को ज्ञान का साधन मानता है।
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