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Saturday, May 28, 2022

ज्योतिबा फुले का जाति व्यवस्था बोध

ज्योतिबा फुले का जाति व्यवस्था बोध 

ज्योतिबा फुले का जाति व्यवस्था बोध 

    ज्योतिबा फुले जातीय व्यवस्था के बुनियादी समाज में परिवर्तन करना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र में “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की । ज्योतिबा फुले ने अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ में जाति व्यवस्था की व्याख्या की और कहा कि “हमे भारतीय समाज के शूद्र-अतिशूद्र लोगों की ऐतिहासिक गुलामी का अन्त करना होगा और इसके लिए सभी न्यायप्रिय लोगों को विरोध करना पड़ेगा”।

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ज्योतिबा फुले ( Jyotirao Phule )

ज्योतिबा फुले ( Jyotirao Phule )

ज्योतिबा फुले ( Jyotirao Phule )

    महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले (11 अप्रैल 1827 – 28 नवम्बर 1890) एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं ''जोतिबा फुले” के नाम से भी जाना जाता है । सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया । महिलाओं व पिछडे और अछूतो के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए । समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे । वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे । 1883 में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" की उपाधि दी ।

ज्योतिबा फुले ( Jyotirao Phule ) की प्रमुख कृति

·         तृतीय रत्न

·         छत्रपति शिवाजी

·         राजा का मोसला का पखड़ा

·         किसान का कोड़ा

·         अछूतो की कैफियत

ज्योतिबा फुले ( Jyotirao Phule ) के दार्शनिक विचार 

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