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गाँधी का आधुनिक समाज का विचार

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गाँधी का आधुनिक समाज का विचार गाँधी का आधुनिक समाज का विचार    गाँधी का आधुनिक समाज एक आदर्श राज्य पर आधारित है। आदर्श राज्य के लिए गाँधी जी सर्वोदय अर्थात सबका उदय का सिद्धान्त देते है और कहते है कि प्रत्येक ग्राम में दैनिक आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भरता विकसित होनी चाहिए। ------------

गाँधी का स्वराज विचार

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गाँधी का स्वराज विचार  गाँधी का स्वराज विचार        महात्मा गाँधी ने सर्वप्रथम 3 नवम्बर , 1905 को एक लेख में ' स्वराज ' शब्द का उल्लेख किया था। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय शैली की हिंसा एवं उसके मूल स्वरूप पर गाँधीजी ने अपनी साप्ताहिक पत्रिका ' इण्डियन ओपिनियन ' में लेख लिखे , जिसका संकलन कर ' हिन्द स्वराज्य ' पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक में गाँधीजी ने स्वराज पर अपने विचार की विस्तृत एवं स्पष्ट रूप से व्याख्या की है। गाँधीजी के अनुसार स्वराज का अर्थ है - जनमानस। यह इस प्रकार से शिक्षित हो कि उनसे सत्ता के दुरुपयोग को रोकने तथा उसे सही दिशा में प्रवाहित कराने की शक्ति तथा क्षमता जाग सके। ' स्वराज ' का अर्थ है कि हर व्यक्ति के मन में स्वतन्त्रता का भाव सजग रहे। सच्ची स्वतन्त्रता भेदभाव से ऊपर उठ जाती है , हर व्यक्ति की स्वतन्त्रता के मूल्य को समझती है तथा सत्ता के दुरुपयोग की ओर भी सजग रहती है। गाँधीजी ने ' स्वदेशी ' की अवधारणा का पूर्णतः समर्थन किया। स्वदेशी से गाँधीजी का आशय - स्थानीय उत्पादों से परे न जाना था। स्वदेशी आन्दोलन के

गाँधी का सत्याग्रह

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गाँधी का सत्याग्रह  गाँधी का सत्याग्रह       गाँधीजी की सत्याग्रह अवधारणा का विचार न्यूटेस्टामेण्ट और विशेषतया सरमन ऑन द माउण्ट से आया। सत्याग्रह दो शब्दों से बना है- ' सत्य+आग्रह ' अर्थात् साध्य रूप सत्य को प्राप्त करने के लिए जीवनपर्यन्त उसके लिए आग्रह करना और उस पर जीवनपर्यन्त दृढ रहना ही सत्याग्रह है। इसका मूल लक्ष्य सामने वाले व्यक्ति में हृदय परिवर्तन है। अहिंसा या प्रेम ही इसका मूलाधार है , क्योंकि इसके अनुसार बुरे-से-बुरे व्यक्ति में भी शुभ या सत्य का अहं विद्यमान रहता है। गाँधीजी के अनुसार , सत्य तो ईश्वर है , अतः सत्याग्रह ईश्वरीय आग्रह है। व्यावहारिक दृष्टि से इसका अर्थ हो जाता है- “सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा”। सत्याग्रही बनने के लिए आवश्यक गुण   गाँधीजी के अनुसार , एक सत्याग्रही में निम्नलिखित गुण होने चाहिए – Ø   सत्याग्रही असीम धैर्यवान होना चाहिए। Ø   सत्याग्रही पूर्णतया ईमानदार एवं अपने संकल्प के प्रति पूर्ण निष्ठावान हो। Ø   सत्याग्रही को खुले मन का होना आवश्यक है , तभी वह हृदय परिवर्तन करा सकता है। Ø   उसे पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए। Ø   उसे पूर्

गाँधी का अहिंसा विचार

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गाँधी का अहिंसा विचार  गाँधी का अहिंसा विचार      गाँधी का अहिंसा विचार महान विचारक टॉलस्टाय से प्रभावित था। गाँधी जी अहिंसा को सत्य की प्राप्ति का साधन मानते थे। अतः उनके अनुसार, सत्य और अहिंसा एक-दूसरे की सार्थकता का आधार है। गाँधी जी अहिंसा को मानव का प्राकृतिक गुण मानते थे। वे कहते थे कि अहिंसा का अर्थ केवल हत्या न करना ही नहीं है वरन् किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुंचना है। उन्होंने यंग इण्डिया पत्रिका के एक अंक में लिखा था कि “पूर्ण अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति दुर्भावना के अभाव का नाम है”। गाँधी जी अहिंसा को किसी कायरता के रूप में नहीं बल्कि आत्मबल के रूप में स्वीकार करते थे। उनके अनुसार, अहिंसा का तात्पर्य अत्याचारी के प्रति नम्रतापूर्ण समर्पण नहीं वरन् इसका तात्पर्य अत्याचारी की मनमानी इच्छा का आत्मिक बल के आधार पर प्रतिरोध करना है”। गाँधी जी ने अहिंसा के तीन भेद बतलाये है – 1.     जाग्रत अहिंसा – यह साधन-सम्पन्न और बहादुर व्यक्तियों की अहिंसा है। 2.    औचित्यपूर्ण अहिंसा – यह निर्बल व्यक्तियों या असहाय लोगों की अहिंसा है। 3.    भीरुओं की अहिंसा – यह डरपोक व्यक्तियों की

गाँधी का सत्य विचार

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गाँधी का सत्य विचार  गाँधी का सत्य विचार     गाँधीजी के अनुसार , " सत्य आध्यात्मिक सिद्धान्त है और इसका प्रयोग आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक दोनों हो सकता है। ” इसी के साथ ही गाँधीजी ने शिक्षा (ज्ञान) को सत्य का तार्किक आधार बताया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि – " शिक्षा का अर्थ व्यक्ति के शरीर , मन , आत्मा में जो शुभत्व है , उसे प्रकट करने का प्रयत्न किया है।" गाँधीजी ने सत्य की जटिल अवधारणा की तुलना में सत्य के सरलतम भाव को अपनाया तथा ' सत्य ' एवं ' सत् ' के भेद को समाप्त कर दिया , क्योंकि ' सत्य ' शब्द को वे सत् शब्द से ही निकला हुआ मानते थे। इस प्रकार गाँधीजी के अनुसार , सत्य मात्र वैचारिक कोटि नहीं है , मात्र यह निर्णयों पर लगने वाला भाव नहीं है , यह वास्तविकता एवं सत् है। अतः ईश्वर सत्य है और सत्य ईश्वर है।   -------------

महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi )

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महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi ) महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi )     मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म: 2 अक्टूबर 1869 - निधन: 30 जनवरी 1948) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है , भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे , उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम दिलाकर पूरे विश्व में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें संसार में साधारण जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी , तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी। 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे उन्हें बापू के नाम से भी स