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Wednesday, May 18, 2022

गाँधी का आधुनिक समाज का विचार

गाँधी का आधुनिक समाज का विचार

गाँधी का आधुनिक समाज का विचार

   गाँधी का आधुनिक समाज एक आदर्श राज्य पर आधारित है। आदर्श राज्य के लिए गाँधी जी सर्वोदय अर्थात सबका उदय का सिद्धान्त देते है और कहते है कि प्रत्येक ग्राम में दैनिक आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भरता विकसित होनी चाहिए।

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गाँधी का स्वराज विचार

गाँधी का स्वराज विचार 

गाँधी का स्वराज विचार  

    महात्मा गाँधी ने सर्वप्रथम 3 नवम्बर, 1905 को एक लेख में 'स्वराज' शब्द का उल्लेख किया था। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय शैली की हिंसा एवं उसके मूल स्वरूप पर गाँधीजी ने अपनी साप्ताहिक पत्रिका 'इण्डियन ओपिनियन' में लेख लिखे, जिसका संकलन कर 'हिन्द स्वराज्य' पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक में गाँधीजी ने स्वराज पर अपने विचार की विस्तृत एवं स्पष्ट रूप से व्याख्या की है। गाँधीजी के अनुसार स्वराज का अर्थ है - जनमानस। यह इस प्रकार से शिक्षित हो कि उनसे सत्ता के दुरुपयोग को रोकने तथा उसे सही दिशा में प्रवाहित कराने की शक्ति तथा क्षमता जाग सके। 'स्वराज' का अर्थ है कि हर व्यक्ति के मन में स्वतन्त्रता का भाव सजग रहे। सच्ची स्वतन्त्रता भेदभाव से ऊपर उठ जाती है, हर व्यक्ति की स्वतन्त्रता के मूल्य को समझती है तथा सत्ता के दुरुपयोग की ओर भी सजग रहती है। गाँधीजी ने 'स्वदेशी' की अवधारणा का पूर्णतः समर्थन किया। स्वदेशी से गाँधीजी का आशय - स्थानीय उत्पादों से परे न जाना था। स्वदेशी आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा की अवधारणा का प्रतिपादन हुआ।

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गाँधी का सत्याग्रह

गाँधी का सत्याग्रह 

गाँधी का सत्याग्रह  

   गाँधीजी की सत्याग्रह अवधारणा का विचार न्यूटेस्टामेण्ट और विशेषतया सरमन ऑन द माउण्ट से आया। सत्याग्रह दो शब्दों से बना है- 'सत्य+आग्रह' अर्थात् साध्य रूप सत्य को प्राप्त करने के लिए जीवनपर्यन्त उसके लिए आग्रह करना और उस पर जीवनपर्यन्त दृढ रहना ही सत्याग्रह है। इसका मूल लक्ष्य सामने वाले व्यक्ति में हृदय परिवर्तन है। अहिंसा या प्रेम ही इसका मूलाधार है, क्योंकि इसके अनुसार बुरे-से-बुरे व्यक्ति में भी शुभ या सत्य का अहं विद्यमान रहता है। गाँधीजी के अनुसार, सत्य तो ईश्वर है, अतः सत्याग्रह ईश्वरीय आग्रह है। व्यावहारिक दृष्टि से इसका अर्थ हो जाता है- “सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा”।

सत्याग्रही बनने के लिए आवश्यक गुण 

गाँधीजी के अनुसार, एक सत्याग्रही में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

Ø  सत्याग्रही असीम धैर्यवान होना चाहिए।

Ø  सत्याग्रही पूर्णतया ईमानदार एवं अपने संकल्प के प्रति पूर्ण निष्ठावान हो।

Ø  सत्याग्रही को खुले मन का होना आवश्यक है, तभी वह हृदय परिवर्तन करा सकता है।

Ø  उसे पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए।

Ø  उसे पूर्णतया निर्भयी होना चाहिए।

Ø  उसमें बलिदान, कष्ट झेलने की क्षमता व विनम्रहृदयी होना चाहिए।

Ø  अहंकार से उसे मुक्त रहना चाहिए।

Ø  सत्य एवं अहिंसा का पालन मनसा वाचा कर्मणा का अनुसरण करना चाहिए।

Ø  उसे अपने विश्वास और आचरण के प्रति अडिग रूप से समर्पित होना चाहिए।

Ø  उसके विचारों में एकरूपता होनी चाहिए। ऐसा न होने पर गलत प्रवृत्तियों के उदय होने की सम्भावना रहेगी।

Ø  उसे स्वार्थमूलक प्रवृत्तियों से दूर रहना चाहिए।

Ø  उसे अपने व्यक्तित्व में अनिवार्य सद्गुणों को आत्मसात करना चाहिए।

Ø  उसे सहिष्णु तथा सहनशक्ति होना चाहिए।

 

सत्याग्रह के प्रकार

Ø  असहयोग आन्दोलन

Ø  सविनय अवज्ञा आन्दोलन

Ø  हिजरत या प्रवजन

Ø  अनशन

Ø  हड़ताल

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गाँधी का अहिंसा विचार

गाँधी का अहिंसा विचार 

गाँधी का अहिंसा विचार 

    गाँधी का अहिंसा विचार महान विचारक टॉलस्टाय से प्रभावित था। गाँधी जी अहिंसा को सत्य की प्राप्ति का साधन मानते थे। अतः उनके अनुसार, सत्य और अहिंसा एक-दूसरे की सार्थकता का आधार है। गाँधी जी अहिंसा को मानव का प्राकृतिक गुण मानते थे। वे कहते थे कि अहिंसा का अर्थ केवल हत्या न करना ही नहीं है वरन् किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुंचना है। उन्होंने यंग इण्डिया पत्रिका के एक अंक में लिखा था कि “पूर्ण अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति दुर्भावना के अभाव का नाम है”। गाँधी जी अहिंसा को किसी कायरता के रूप में नहीं बल्कि आत्मबल के रूप में स्वीकार करते थे। उनके अनुसार, अहिंसा का तात्पर्य अत्याचारी के प्रति नम्रतापूर्ण समर्पण नहीं वरन् इसका तात्पर्य अत्याचारी की मनमानी इच्छा का आत्मिक बल के आधार पर प्रतिरोध करना है”।

गाँधी जी ने अहिंसा के तीन भेद बतलाये है –

1.    जाग्रत अहिंसा – यह साधन-सम्पन्न और बहादुर व्यक्तियों की अहिंसा है।

2.   औचित्यपूर्ण अहिंसा – यह निर्बल व्यक्तियों या असहाय लोगों की अहिंसा है।

3.   भीरुओं की अहिंसा – यह डरपोक व्यक्तियों की अहिंसा है।

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गाँधी का सत्य विचार

गाँधी का सत्य विचार 

गाँधी का सत्य विचार 

   गाँधीजी के अनुसार, "सत्य आध्यात्मिक सिद्धान्त है और इसका प्रयोग आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक दोनों हो सकता है।इसी के साथ ही गाँधीजी ने शिक्षा (ज्ञान) को सत्य का तार्किक आधार बताया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि– "शिक्षा का अर्थ व्यक्ति के शरीर, मन, आत्मा में जो शुभत्व है, उसे प्रकट करने का प्रयत्न किया है।" गाँधीजी ने सत्य की जटिल अवधारणा की तुलना में सत्य के सरलतम भाव को अपनाया तथा 'सत्य' एवं 'सत्' के भेद को समाप्त कर दिया, क्योंकि 'सत्य' शब्द को वे सत् शब्द से ही निकला हुआ मानते थे। इस प्रकार गाँधीजी के अनुसार, सत्य मात्र वैचारिक कोटि नहीं है, मात्र यह निर्णयों पर लगने वाला भाव नहीं है, यह वास्तविकता एवं सत् है। अतः ईश्वर सत्य है और सत्य ईश्वर है।  

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महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi )

महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi )

महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi )

    मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म: 2 अक्टूबर 1869 - निधन: 30 जनवरी 1948) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम दिलाकर पूरे विश्व में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें संसार में साधारण जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी, तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी। 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे उन्हें बापू के नाम से भी स्मरण किया जाता है। एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे। सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयन्ती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    सबसे पहले गान्धी जी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना आरम्भ किया। 1915 में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, श्रमिकों और नगरीय श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये लवण कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से विशेष विख्याति प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें कारागृह में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन बिताया और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है।

महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi ) की प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें

गाँधी जी द्वारा मौलिक रूप से लिखित पुस्तकें चार हैं –

1.    हिंद स्वराज

2.   दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास

3.   सत्य के प्रयोग (आत्मकथा)

4.   गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका।

महात्मा गाँधी ( Mahatma Gandhi ) के दार्शनिक विचार 

गाँधी का सत्य विचार

गाँधी का अहिंसा विचार

गाँधी का सत्याग्रह

गाँधी का स्वराज विचार

गाँधी का आधुनिक समाज का विचार

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