गाँधी का अहिंसा विचार

गाँधी का अहिंसा विचार 

गाँधी का अहिंसा विचार 

    गाँधी का अहिंसा विचार महान विचारक टॉलस्टाय से प्रभावित था। गाँधी जी अहिंसा को सत्य की प्राप्ति का साधन मानते थे। अतः उनके अनुसार, सत्य और अहिंसा एक-दूसरे की सार्थकता का आधार है। गाँधी जी अहिंसा को मानव का प्राकृतिक गुण मानते थे। वे कहते थे कि अहिंसा का अर्थ केवल हत्या न करना ही नहीं है वरन् किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुंचना है। उन्होंने यंग इण्डिया पत्रिका के एक अंक में लिखा था कि “पूर्ण अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति दुर्भावना के अभाव का नाम है”। गाँधी जी अहिंसा को किसी कायरता के रूप में नहीं बल्कि आत्मबल के रूप में स्वीकार करते थे। उनके अनुसार, अहिंसा का तात्पर्य अत्याचारी के प्रति नम्रतापूर्ण समर्पण नहीं वरन् इसका तात्पर्य अत्याचारी की मनमानी इच्छा का आत्मिक बल के आधार पर प्रतिरोध करना है”।

गाँधी जी ने अहिंसा के तीन भेद बतलाये है –

1.    जाग्रत अहिंसा – यह साधन-सम्पन्न और बहादुर व्यक्तियों की अहिंसा है।

2.   औचित्यपूर्ण अहिंसा – यह निर्बल व्यक्तियों या असहाय लोगों की अहिंसा है।

3.   भीरुओं की अहिंसा – यह डरपोक व्यक्तियों की अहिंसा है।

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