Showing posts with label पर्याय की अवधारणा. Show all posts
Showing posts with label पर्याय की अवधारणा. Show all posts

Tuesday, September 28, 2021

जैन दर्शन में पर्याय की अवधारणा

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

जैन दर्शन में पर्याय की अवधारणा 

जैन दर्शन में पर्याय की अवधारणा 

     जब मनुष्य राग-द्वेष आदि मानसिक बाधाओं पर विजय पाता है, तब अन्य व्यक्तियों के वर्तमान तथा भूत विचारों को जान सकता है। ऐसे ज्ञान को मन:पर्याय कहते हैं, क्योंकि इससे दूसरों के मन में प्रवेश हो सकता है। जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक द्रव्य के दूसरे धर्म को आगन्तुक या परिवर्तनशील धर्म कहते हैं। इसी आगन्तुक या परिवर्तनशील धर्म को जैन दर्शन में पर्याय कहा गया है।

----------------

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...