जैन दर्शन में पर्याय की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
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जैन दर्शन में पर्याय की अवधारणा |
जैन दर्शन में पर्याय की अवधारणा
जब मनुष्य राग-द्वेष आदि मानसिक
बाधाओं पर विजय पाता है, तब अन्य व्यक्तियों के वर्तमान तथा भूत विचारों को जान सकता है।
ऐसे ज्ञान को मन:पर्याय कहते हैं, क्योंकि इससे
दूसरों के मन में प्रवेश हो सकता है। जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक द्रव्य के दूसरे
धर्म को आगन्तुक या परिवर्तनशील धर्म कहते हैं। इसी आगन्तुक या परिवर्तनशील धर्म को
जैन दर्शन में पर्याय कहा गया है।
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