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Wednesday, May 18, 2022

राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण

राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण 

राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण  

    राधाकृष्णन एक प्रत्ययवादी दार्शनिक है तथा उनके दर्शन पर शंकर के अद्वैतवाद का प्रभाव था। इनके दर्शन में नव हिन्दू धर्म का प्रतिपादन हुआ है। उन्होंने जीवन एवं जगत की सत्ता का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार हिन्दू धर्म शुद्ध अध्यात्मवाद होते हुए भी जीवन एवं जगत की सत्यता का उच्च स्तर का उद्घोष करता है। हिन्दू धर्म तो धर्म से ज्यादा एक जीवन का मार्ग है। विश्व के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मानव ही ऐसा प्राणी है, जो इस लोक में पाप और पुण्य दोनों कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। कर्म ही जीवन का प्रधान अंग होता है। इसके द्वारा जीवन को मजबूत बनाया जाता है और इसी आधार पर मानव अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता हुआ जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करता है। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कर्म को ही प्रधान माना जाता है। पुरुषार्थों के साधन के लिए सम्पूर्ण जीवन को कई भागों में विभाजित किया गया है जिसे आश्रम कहा जाता है। आश्रमों में विभक्त सम्पूर्ण जीवन कर्मवाद के अन्दर आवृत माना गया है। भारतीय जीवन में पुनर्जन्मवाद प्रमुख आधार है।

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राधाकृष्णन की सार्वभौमिक धर्म की संकल्पना

राधाकृष्णन की सार्वभौमिक धर्म की संकल्पना 

राधाकृष्णन की सार्वभौमिक धर्म की संकल्पना 

    राधाकृष्णन के अनुसार, धर्म वह अनुशासन है, जो अन्तरात्मा को स्पर्श करता है और हमें बुराई एवं कुत्सिता से संघर्ष करने में सहायता देता है व काम, क्रोध, लोभ से हमारी रक्षा करता है। धर्म नैतिक बल को उन्मुक्त करता है तथा संसार को बाँधने के महान् कार्य के लिए साहस प्रदान करता है। इसने हिन्दू धर्म के केन्द्रीय सिद्धान्तों, इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक सिद्धान्त, धार्मिक अनुभव, नैतिक चरित्र और पारम्परिक धर्मों का विश्लेषण किया है। हिन्दू धर्म परिणाम नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है। इसमें विकसित होती परम्परा है, न कि अन्य धर्मों के समान निश्चित रहस्योद्घाटन। इन्होंने ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म और बौद्ध धर्म की तुलना हिन्दू धर्म से की है तथा इस बात का विश्लेषण किया कि इन धर्मों का अन्तिम उद्देश्य सार्वभौमिक स्वयं की प्राप्ति है। सभी धर्मों में धार्मिक मतभेदों का मूल कारण धर्म के प्रत्येक पक्ष के स्थान पर किसी एक पक्ष पर सम्पूर्ण बल दिया जाना तथा अन्य पक्षों की उपेक्षा करना है। यदि सभी धर्मों के मूल में जाकर विश्लेषण किया जाए, तो यह बात स्पष्ट होती है कि सभी धर्मों में एक ऐसी मूल एकरूपता है, जो इनकी विभिन्नता से ऊपर उठकर है। यही एकरूपता सार्वभौमिक धर्म है। यहाँ पर विभिन्न धर्मों के विवाद समाप्त हो जाते हैं।

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राधाकृष्णन का जीवन आदर्श विचार

राधाकृष्णन का जीवन आदर्श विचार 

राधाकृष्णन का जीवन आदर्श विचार 

     राधाकृष्णन ने Idea (आदर्श) तथा Idealism (आदर्शवाद) शब्द के विभिन्न अर्थों का विश्लेषण किया है। Idea का तात्पर्य है, यह हमें किस ओर प्रेरित कर रहा है या किस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर कर रहा है। जगत् के क्रियाकलाप कोई अबौद्धिक क्रियाकलाप नहीं हैं, बल्कि यह निरन्तर किसी आदर्श प्राप्ति की ओर उन्मुख होता है, तो वह विचार आदर्शवाद का उदाहरण बन जाता है। इसी दृष्टि से आदर्शवादी विचारक जगत् की अपनी सार्थकता को स्वीकार करते हैं, जिसका अपना कुछ लक्ष्य है और इसकी सभी प्रक्रियाएँ उस लक्ष्य के प्रयोजन की प्राप्ति के माध्यम हैं। राधाकृष्णन पूर्णतया एक आदर्शवादी हैं, क्योंकि उनके अनुसार जगत् प्रक्रिया से कुछ प्रयोजन सिद्ध होते हैं और यह प्रक्रिया सतत् किसी लक्ष्य की ओर अग्रसर हो रही है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास के कारण आधुनिक जीवन यन्त्रयुक्त जीवन हो गया है। परिणामस्वरूप मानव की आत्म-अनुभूति शक्ति कुंठित हो गई है, जिससे मानव जगत् प्रक्रिया के इस आदर्श रूप की उपेक्षा कर देता है। राधाकृष्णन के अनुसार, जगत् प्रक्रिया के आदर्श रूप स्थापित करने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता आत्म को जगाने की है तथा आध्यात्मिक आस्था को पुनः स्थापित करने की है। जब तक मानव की आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत नहीं होती है, तब तक मानव जीवन दिशाहीन, निरर्थक एवं अशुभ ही प्रतीत होगा।

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राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार

राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार 

 राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार 

     राधाकृष्णन के अनुसार बुद्धि और अंतःप्रज्ञा में पारस्परिक सहयोग है। अन्तःप्रज्ञा को कम-से-कम कुछ कार्यों के लिए बुद्धि का सहारा लेना ही पड़ता है। अपने अनुभूत सत्यों को व्यक्त करने के लिए, उन्हें दूसरों के लिए बोधगम्य बनाने के लिए तथा आवश्यकता पड़ने पर उनका प्रमाण करने के लिए अन्तः प्रज्ञा बुद्धि पर झुकती है। इसके द्वारा जो सत्य उपलब्ध होते हैं, वे बहुधा इस रूप में नहीं होते कि अन्य भी उसे समझ सकें। अतः आवश्यकता होती है कि उन सबको इस रूप में प्रस्तुत किया जाए, जो अन्य के लिए भी सरल हो और यह कार्य तो बुद्धि ही कर सकती है। इसके विपरीत बुद्धि एक रूप से अन्त:प्रज्ञा की पूर्वमान्यता पर आधृत होती है। बौद्धिक वृत्ति एक प्रकार से अन्तः प्रज्ञा के बिना अपना कार्य सम्पादित नहीं कर सकती। बौद्धिकता विश्लेषण की विधि है। विश्लेषण के लिए यह अवबोध आवश्यक है कि जिसका विश्लेषण हो रहा है, वह अपने में एक सम्पूर्णता है, एक पूर्ण इकाई है। यह समझ अन्तःप्रज्ञा ही दे सकती है। इसी आधार पर अन्तःप्रज्ञा को प्राथमिक माना जाता है। अन्तःप्रज्ञा में एक ओर सहज प्रवृत्ति के समान साक्षातता, सहजता एवं अपने विषय को सम्पूर्णता में पकड़ने की क्षमता निहित है, तो दूसरी ओर इसमें बुद्धि के समान चेतना भी निहित है। यह साक्षात् एवं तात्कालिक ज्ञान देता है, क्योंकि इसका सम्पर्क विषय से साक्षात् रूप में होता है, चिह्नों तथा प्रतीकों के द्वारा नहीं। यह किसी माध्यम के द्वारा कार्य नहीं करती। अन्तःप्रज्ञा का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि इससे प्राप्त ज्ञान स्वतः सिद्ध होता है। इसे स्वतः कहने के पीछे कारण यह है कि इसे प्रमाणित करने के लिए अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। यह अपना प्रमाण स्वतः प्रस्तुत करता है। अन्तःप्रज्ञा की विशिष्टता है कि इससे प्राप्त अवगति में यह भी निहित है कि यह यथार्थ है। इसे तात्कालिक ज्ञान भी कहते हैं, क्योंकि यह ज्ञान हर भेद, हर द्वैत को मिटा देता है। इस प्रकार का जानना विषय को आत्मसात् करना है। इस प्रकार की अन्तःप्रज्ञा उन सभी कार्यों को कर लेती है जो इन्द्रिय सहज प्रवृत्ति एवं बुद्धि से सम्पादित होते हैं तथा उसके अतिरिक्त कुछ ऐसे कार्य भी सम्पादित करती है, जो उन तीनों से सम्भव नहीं है। इसकी यही विशिष्टता एवं व्यापकता इसे सत् ज्ञान के लिए समर्थ बना देती है।

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सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Sarvepalli Radhakrishnan )

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Sarvepalli Radhakrishnan )

 सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Sarvepalli Radhakrishnan )

    डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 — 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Sarvepalli Radhakrishnan ) की कृतियाँ

Ø  रवींद्रनाथ टैगोर का दर्शन

Ø  इंडियन फिलॉसफी

Ø  द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ

Ø  जीवन का एक आदर्शवादी दृष्टिकोण

Ø  कल्कि या भविष्य का सभ्यता

Ø  ईस्टर्न रिलिजन्स एंड वेस्टर्न थॉट

Ø  धर्म और समाज

Ø  भगवद्गीता: एक परिचयात्मक निबंध

Ø  द धम्मपद

Ø  द प्रिंसिपल उपनिषद

Ø  विश्वास की वसूली

Ø  ए सोर्स बुक इन इंडियन फिलॉसफी

Ø  ब्रह्म सूत्र: आध्यात्मिक जीवन का दर्शन

Ø  धर्म, विज्ञान और संस्कृति

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Sarvepalli Radhakrishnan ) के दार्शनिक विचार 

राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार

राधाकृष्णन का जीवन आदर्श विचार

राधाकृष्णन की सार्वभौमिक धर्म की संकल्पना

राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण

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विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...