राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण

राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण 

राधाकृष्णन का जीवन के प्रति हिन्दू दृष्टिकोण  

    राधाकृष्णन एक प्रत्ययवादी दार्शनिक है तथा उनके दर्शन पर शंकर के अद्वैतवाद का प्रभाव था। इनके दर्शन में नव हिन्दू धर्म का प्रतिपादन हुआ है। उन्होंने जीवन एवं जगत की सत्ता का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार हिन्दू धर्म शुद्ध अध्यात्मवाद होते हुए भी जीवन एवं जगत की सत्यता का उच्च स्तर का उद्घोष करता है। हिन्दू धर्म तो धर्म से ज्यादा एक जीवन का मार्ग है। विश्व के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मानव ही ऐसा प्राणी है, जो इस लोक में पाप और पुण्य दोनों कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। कर्म ही जीवन का प्रधान अंग होता है। इसके द्वारा जीवन को मजबूत बनाया जाता है और इसी आधार पर मानव अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता हुआ जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करता है। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कर्म को ही प्रधान माना जाता है। पुरुषार्थों के साधन के लिए सम्पूर्ण जीवन को कई भागों में विभाजित किया गया है जिसे आश्रम कहा जाता है। आश्रमों में विभक्त सम्पूर्ण जीवन कर्मवाद के अन्दर आवृत माना गया है। भारतीय जीवन में पुनर्जन्मवाद प्रमुख आधार है।

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