Posts

Showing posts with the label अनुपलब्धि प्रमाण

मीमांसा दर्शन में अभाव और अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन में अभाव और अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा  मीमांसा दर्शन में अभाव और अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा  अभाव और अनुपलब्धि     अभाव और अनुपलब्धि दोनों की विवेचना मीमांसा दर्शन के अन्तर्गत प्रमाण के सन्दर्भ में की जाती है। यद्यपि पूर्व - मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी ने यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष , अनुमान एवं शब्द प्रमाणों का विवेचन किया था। जैमिनी के बाद बहुत से टीकाकार एवं स्वतन्त्र ग्रन्थकार हुए , जिनमें दो प्रमुख थे - कुमारिल भट्ट एवं प्रभाकर।     प्रभाकर ने यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करने के पाँच प्रमाणों - प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान , शब्द तथा अर्थापत्ति को स्वीकार किया था , जबकि कुमारिल भट्ट ने प्रभाकर के पाँच प्रमाणों के अतिरिक्त अनुपलब्धि को भी यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के प्रमाण ( साधन ) के रूप में स्वीकार किया। इसी अनुपलब्धि के सन्दर्भ में अभाव की भी चर्चा होती है अर्थात् अभाव एवं अनुपलब्धि को लेकर प्रभाकर एवं कुम

मीमांसा दर्शन में अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन में अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा  मीमांसा दर्शन में अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा  अनुपलब्धि ( कुमारिल भट्ट )     कुमारिल भट्ट का मत है कि “ किसी स्थान विशेष एवं काल विशेष में जो वस्तु उपस्थित होने योग्य है , वहाँ उस वस्तु का उपस्थित न होना ही उसके अभाव का सूचक है , इस अभाव का ज्ञान जिस प्रमाण की सहायता से होता है , उसे ही अनुपलब्धि कहते हैं। "     प्रभाकर अनुपलब्धि को एक स्वतन्त्र प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करते , जबकि कुमारिल भट्ट तथा अद्वैत वेदान्ती अनुपलब्धि को एक स्वतन्त्र प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं। उदाहरणार्थ “ शाम को छ : बजे मन्दिर में पुजारी उपस्थित होने योग्य है , वह प्रत्यक्ष द्वारा प्राप्त होना चाहिए , किन्तु यदि उसकी प्राप्ति नहीं होती तो हमें यह ज्ञात हो जाता है कि मन्दिर में पुजारी का अभाव है। ''     नैयायिक अनुपलब्धि को स्वतन्त्र प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करते तथा कहते हैं कि प्राप्