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बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग / Eightfold Path of Buddhism

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बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग / Eightfold Path of Buddhism बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग / Eightfold Path of Buddhism      बुद्ध के द्वितीय आर्य सत्य अर्थात दुःख समुदय को ‘प्रतीत्यसमुत्पाद’ कहा जाता है। इसका अर्थ – दुःख के कारण को खोज करना है। यदि एक बार कारण को खोज लिया जाए तो निवारण स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। बुद्ध का दर्शन दुःख से निवारण का मार्ग है। अतः बुद्ध ने सर्वप्रथम दुःख के कारणों को खोज और द्वादश निदान संसार के लोगों को बताए जो इस प्रकार है – जरा-मरण अर्थात वृद्धा अवस्था।  जाति अर्थात जन्म लेना। भव अर्थात जन्म ग्रहण करने की इच्छा। उपादान अर्थात जगत की वस्तुओं के प्रति राग एवं मोह। तृष्णा अर्थात विषयों के प्रति आसक्ति। वेदना अर्थात अनुभूति स्पर्श अर्थात इन्द्रियों का विषयों से संयोग षडायतन अर्थात छः इन्द्रिय समूह या शरीर नामरुप अर्थात मन के साथ शरीर सम्बन्ध। विज्ञान अर्थात चेतना संस्कार अर्थात पूर्व जन्मों के फल अविद्या अर्थात अनित्य को नित्य, असत्य को सत्य और अनात्म को आत्म समझना।     इस प्रकार इन 12 कारणों से दुःख उत्पन्न होता है। बुद्ध ने दुःख निरोध के लिए 8