Posts

Showing posts with the label अप्रमा

न्याय दर्शन में प्रमा और अप्रमा विचार // Prama and Aprama Thoughts in Nyaya Philosophy

Image
न्याय दर्शन में प्रमा और अप्रमा विचार // Prama and Aprama Thoughts in Nyaya Philosophy न्याय दर्शन में प्रमा और अप्रमा विचार प्रमा / Prama         “प्रमियते अनेन इति प्रमा” अर्थात प्रमा अवस्थाओं का यथार्थ ज्ञान है। इसमें वस्तु जैसी होती है उसका वैसा ही ज्ञान होता है, जैसे - घट को घट के रूप में जानना प्रमा है। बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति अनुसार ‘प्रमा उस वस्तु की अभिव्यक्ति है जिससे किसी प्रयोजन की सिद्धि होती है’। यह विचार पाश्चात्य दर्शन के व्यवहारवादी सिद्धान्त से मिलता-जुलता है। मीमांसकों के अनुसार – ‘अनधिगत ज्ञान प्रमा है’ । पार्थसारथी मिश्र ने शास्त्रदीपिका में कहा हैं – “यथार्थमगृहीत ग्राही ज्ञानम् प्रमा इति”  अर्थात् अग्रहीत ज्ञान का ग्रहण प्रमा है। नैयायिकों के अनुसार – ‘प्रमा किसी वस्तु का असंदिग्ध ज्ञान है’। गंगेश उपाध्याय के अनुसार – “यत्रयदस्ति तत्र तस्यानुभव: प्रम” । अन्नंभट्ट के अनुसार – “तद्वति तत्प्रकारका रकानुभवो यथार्थ:” । अद्वैत वेदान्त में प्रमा को नवीन एवं अबाधित माना गया है। इस संदर्भ में धर्मराजाध्वरीन्द्र ने वेदान्त परिभाषा में कहा है – “अनधिगताबाधितार्थ विषयक ज्ञ

न्याय दर्शन में प्रमा तथा अप्रमा का स्वरूप

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer न्याय दर्शन में प्रमा तथा अप्रमा का स्वरूप  न्याय दर्शन में प्रमा तथा अप्रमा का स्वरूप        न्याय दर्शन में प्रमा तथा अप्रमा की अवधारणा को समझने हेतु प्रमाण मीमांसा को समझने की जरूरत है। वस्तुत : न्याय दर्शन का मुख्य प्रतिपाद्य विषय प्रमाण मीमांसा है। न्याय दर्शन की प्रमाण मीमांसा वस्तुवादी है। इसमें ज्ञान एवं उसके साधनों का गहन चिन्तन प्राप्त होता है। इसमें आत्मा को ज्ञान का आश्रय माना जाता है। ज्ञान आत्मा का आगन्तुक गुण है। आत्मा में ज्ञान तब उत्पन्न होता है जब ज्ञेय के सम्पर्क में आता है। ज्ञान अपने विषय को प्रकाशित करता है। ज्ञान स्वप्रकाशक नहीं है , वह केवल विषय प्रकाशक है। “ न्याय दर्शन ज्ञान को अनुभव कहता है। " प्रमाण मीमांसा के अन्तर्गत अनुभव ( ज्ञान ) दो प्रकार के होते हैं प्रमा का विचार      यथार्थ अनुभव को प्रमा कहते हैं। तर्क संग्रह के अनुसार , किसी वस्तु का जो वह है , उसी रूप में ज्ञान यथार्थ अनुभव है अथवा जहाँ जो है , वह