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अम्बेडकर का हिन्दुवाद दर्शन

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अम्बेडकर का हिन्दुवाद दर्शन  अम्बेडकर का हिन्दुवाद दर्शन  हिन्दू धर्म संस्था के बारे में डॉ. अम्बेडकर ने अपना दृष्टिकोण निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है – “जो धर्म इंसानों में मानवीय बर्ताव को वर्जित करता है वह धर्म , धर्म नहीं है , बल्कि एक दण्ड है , एक सजा है” । जिन कारणों से डॉ. अंबेडकर ने हिन्दूवाद का त्याग किया , उनकी व्याख्या , उन्होंने इस प्रकार की है – 1.     अज्ञान को प्रोत्साहन - हिन्दूवाद अज्ञान का उत्पादक , पालक और प्रचारक है । गीता का यह आदेश कि ' अज्ञानी को अज्ञानी ही रहने दो , किसी प्रकार के बौद्धिक विकास की गुंजाइश नहीं छोड़ता । 2.    नैतिकता का अभाव - नैतिकता हिन्दूवाद की बुनियाद नहीं । जैसे - रेल के किसी डिब्बे को कभी गाड़ी से जोड़ दिया जाता है तो कभी अलग कर लिया जाता है, ऐसे ही हिन्दूवाद में नैतिकता का स्थान है । 3.    असमता - जातिभेद , छुआछात , भेदभाव और क्रमवार ना-बराबरी हिन्दूवाद के अभिन्न अंग हैं क्योंकि उनको हिन्दू धर्म शास्त्रों का समर्थन प्राप्त है , इनको मिटाने का मतलब है हिन्दूवाद को मिटाना । हिन्दू यह करने के लिए न कभी पहले तैयार थे , न इस