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प्रामाण्यवाद - स्वतः प्रामाण्यवाद तथा परतः प्रामाण्यवाद

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer प्रामाण्यवाद - स्वतः प्रामाण्यवाद तथा परतः प्रामाण्यवाद प्रामाण्यवाद : स्वतःप्रामाण्यवाद तथा परतःप्रामाण्यवाद      ज्ञान प्रमा व अप्रमा दो प्रकार का होता है। प्रामाण्यवाद के अन्तर्गत यह बताने का प्रयास किया गया है कि ज्ञान में प्रामाण्य कैसे उत्पन्न होता है ? ज्ञान में प्रामाण्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मुख्यत : दो सिद्धान्त हैं जो एक - दूसरे से विपरीत हैं तथा जिनका प्रतिपादन नैयायिकों तथा मीमांसकों द्वारा किया गया है। इस सम्बन्ध में नैयायिकों द्वारा परत : प्रामाण्यवाद तथा मीमांसकों द्वारा स्वत : प्रामाण्यवाद का प्रतिपादन किया गया है। स्वतः प्रामाण्यवाद     प्रामाण्य के विषय में जो दर्शन यह स्वीकार करते हैं कि ( जैसे - मीमांसा तथा सांख्य ) ज्ञान का प्रामाण्य उस ज्ञान से बाहर किसी अन्य ज्ञान से नहीं हो सकता अर्थात् ज्ञान को प्रमाणित करने के लिए किसी अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि जो ज्ञान उत्पन्न हुआ है , वह ज्ञान अपनी उत्पत्ति