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जैन दर्शन का स्यादवाद / Syadvada of Jain Philosophy

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जैन दर्शन का स्यादवाद / Syadvada of Jain Philosophy जैन दर्शन का स्यादवाद / Syadvada of Jain Philosophy     जैन दर्शन का स्यादवाद अनेकांतवादी सिद्धान्त पर ही आधारित एक सिद्धान्त है। परन्तु जहाँ अनेकांतवाद जैन दर्शन की तत्त्वमीमांसा से सम्बन्धित है वहीं स्यादवाद ज्ञानमीमांस से सम्बन्धित है। जैन दर्शन में ‘स्यात्’ शब्द का अर्थ – ‘किसी अपेक्षा से’ या ‘किसी दृष्टि में’ लिया गया है। इसे एक शब्द में ‘कथंचित’ भी कहा जा सकता है। इस प्रकार किसी भी वाक्य में ‘स्यात्’ शब्द जोड़ने का अर्थ है कि वह किसी विशेष दृष्टि या अपेक्षा से सत्य है। इस प्रकार जैन दर्शन का स्यादवाद एक प्रकार से सापेक्षवाद ही है।   ---------------

जैन दर्शन में स्यादवाद

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer जैन दर्शन में स्यादवाद जैन दर्शन में स्यादवाद       जैन दार्शनिकों का मत है कि जीव अल्पज्ञ है , क्योंकि कुछ कर्म पुद्गल पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं। साधारण व्यक्ति सांसारिक अवस्था में जो ज्ञान प्राप्त करता है , वह कर्म पुद्गलों के कारण अपूर्ण , सापेक्ष तथा एकांगी होता है। कारण यह है कि साधारण व्यक्ति किसी वस्तु को एक समय में एक ही दृष्टि से देख सकता है , इसलिए उस वस्तु के कुछ ही धर्मों को जान सकता है , परिणामस्वरूप वस्तु के सन्दर्भ में जो कुछ कहा जाता है वह अपूर्ण , सापेक्ष तथा एकांगी होने के कारण प्रामाणिक ज्ञान की कोटि में नहीं आता है।      जैन दार्शनिकों का मत है कि यदि इस सापेक्ष तथा एकांगी ज्ञान को प्रामाणिक बनाना है , तो ऐसे प्रत्येक सांसारिक ज्ञान के पूर्व हमें स्याद शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य है। उल्लेखनीय है कि यहाँ स्याद शब्द से तात्पर्य संशय , सम्भावना , अनिश्चितता तथा अज्ञेयता आदि से नहीं है , बल्कि यहाँ स्याद