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Wednesday, October 6, 2021

मीमांसा दर्शन में उपमान प्रमाण की अवधारणा

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मीमांसा दर्शन में उपमान प्रमाण की अवधारणा 

मीमांसा दर्शन में उपमान प्रमाण की अवधारणा 

उपमान प्रमाण

    मीमांसकों का उपमान प्रमाण नैयायिकों से थोड़ा भिन्न है। न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण के अन्तर्गत समानता का प्रत्यक्ष करके नाम एवं नामी के बीच सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, किन्तु मीमांसकों का मत है कि उपमान प्रमाण के अन्तर्गत हमें यह ज्ञात होता है कि स्मृत वस्तु प्रत्यक्ष वस्तु की तरह है। यहाँ प्रत्यक्ष वस्तु के बारे में किसी प्रामाणिक व्यक्ति के द्वारा कोई पूर्व सूचना किसी ज्ञाता को नहीं दी जाती है। ज्ञाता अपनी स्मृति के आधार पर स्मृत वस्तु एवं प्रत्यक्ष वस्तु के बीच समानता का ज्ञान प्राप्त करता है; जैसेमाना ज्ञाता को गाय का पूर्व ज्ञान है, जब वह वन में गया तो उसने गाय से सादृश्य (समानता) रखता हुआ एक पशु देखा तो उसे देखते ही उसने अपनी स्मृति के आधार पर यह ज्ञान प्राप्त कर लिया कि अरे गाय तो बिल्कुल उस पशु की तरह है। माना किसी ने उसे बताया कि वह नीलगाय है तब उसे यह ज्ञात हो गया कि गाय नीलगाय की तरह है।

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Saturday, October 2, 2021

न्याय दर्शन का उपमान प्रमाण

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न्याय दर्शन का उपमान प्रमाण

न्याय दर्शन का उपमान प्रमाण

     सादृश्यता के प्रत्यक्ष से नाम (संज्ञा) और नामी (संज्ञी) के सम्बन्ध का ज्ञान कराने वाले प्रमाण को उपमान कहते हैं। उदाहरणार्थ-हमें नाम का ज्ञान हो गया या तो कहीं पढ़ने से या सुनने से। माना हमें नीलगाय का ज्ञान हो गया कि नीलगाय वह पशु है जो गाय जैसी होती है, किन्तु अभी हमें नीलगाय का प्रत्यक्ष रूप में ज्ञान नहीं है कि वह कैसी होती है। हमने अभी सिर्फ उसके बारे में सुन रखा है कि वह गाय जैसी होती है। हम जंगल में गए वहाँ हमें गाय की तरह एक पशु दिखाई दिया और हमें ज्ञान हो गया कि यह नीलगाय है अर्थात् अब हमें नाम और नामी का ज्ञान हो गया। यह ज्ञान कैसे हुआ? हमने नीलगाय और गाय में सादृश्यता या समानता का प्रत्यक्ष किया फलतः हमें ज्ञात हो गया कि वह गाय की तरह दिखने वाला पशु नीलगाय है।

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