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मीमांसा दर्शन में श्रुति का महत्व

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन में श्रुति का महत्व  मीमांसा दर्शन में श्रुति का महत्व  श्रुति    श्रति हिन्दू धर्म के प्राचीन और सर्वोच्च धर्मग्रन्थों का समूह है। श्रुति का शाब्दिक अर्थ है - सुना हुआ यानि ईश्वर की वाणी जो प्राचीनकाल में ऋषियों द्वारा सुनी गई थी और शिष्यों के द्वारा सुनकर जगत् में फैलाई गई थी। श्रुति को वेद भी कहा गया है या वेद को श्रुति भी कहा गया है। इसके अन्तर्गत चार वेद आते हैं - ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद और अथर्ववेद फिर सभी वेद के अपने उपवेद , ब्राह्मण उपनिषद् आदि हैं अर्थात् वैदिक साहित्य को श्रुति साहित्य भी कहा जाता है। वेदों को श्रुति दो कारणों से कहा जाता है। इनको परम् - ब्रह्म परमात्मा ने प्राचीन ऋषियों को उनके अन्तर्मन में सुनाया था जब वे ध्यानमग्न थे अर्थात् श्रुति ईश्वर रचित है। वेदों को पहले लिखा नहीं जाता था , इनको गुरु अपने शिष्यों को सुनाकर याद करवा देते थे और इसी तरह परम्परा चलती थी। भारतीय दर्शन में श्रुति ( वेद ) का महत्