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चार्वाकों के द्वारा धर्म तथा मोक्ष के स्वरूप का निराकरण

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer चार्वाकों के द्वारा धर्म तथा मोक्ष के स्वरूप का निराकरण चार्वाक के द्वारा धर्म तथा मोक्ष का निराकरण     चार्वाक मोक्ष को स्वीकार नहीं करता। मोक्ष का अर्थ दुःख विनाश है। आत्मा ही मोक्ष को अपनाती है। चूंकि चार्वाक आत्मा जैसी किसी सत्ता को स्वीकार नहीं करता , अत : चार्वाक मोक्ष को भी स्वीकार नहीं करता। कुछ दार्शनिकों  की मान्यता है कि मोक्ष की प्राप्ति जीवनकाल में ही सम्भव है। चार्वाक कहता है कि दु : ख विनाश इस जीवन में असम्भव है। उसके अनुसार दुःखों को कम तो किया जा सकता है , परन्तु पूर्णत : समाप्त नहीं किया जा सकता।  दु : खों की आत्यान्तिक निवृत्ति मृत्यु से ही हो सकती है। अत : मृत्यु ही मोक्ष है।     चार्वाक धर्म व मोक्ष का खण्डन करते हुए धन व काम को जीवन का लक्ष्य मानता है। धन की उपयोगिता इसलिए है , क्योंकि यह सुख अथवा काम की प्राप्ति में सहायक है। इस प्रकार चार्वाक काम को ही चरम पुरुषार्थ मानता है। इच्छाओं की पूर्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। अत