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वर्णाश्रम ( Varna ) की अवधारणा

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  वर्णाश्रम ( Varna ) की अवधारणा  वर्णाश्रम ( Varna ) की अवधारणा  वर्णव्यवस्था  जातीय व्यवस्था - ऋग्वेद के पुरुष सूक्त (10.10.12) में कहा गया है — ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत बाहूराजन्यः कृतः । उरूतदस्य यद्वेश्यं पद्भ्याँ शूद्रो अजायत ।।   आशय यह कि उस विराट पुरुष के मुख , भुजाओं , जंधों और पैरों से क्रमश: ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र इन चार वर्गों की उत्पत्ति हुई है। श्रीमद्भग गीता में कहा गया है कि गुण और कर्मों के विभाग से ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र अविनाशी परमेश्वर के द्वारा रचे गये हैं। चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः । तस्यकतरिमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ॥ (गी० 4.13) श्रीमद्भगवतगीता में आगे कहा गया है कि जिन चार वर्णों की परमेश्वर से सृष्टि हुई है उनके अलग स्वभाव हैं। उनमें से अन्तःकरण का निग्रह , इन्द्रियों का दमन , बाहर-भीतर की शुद्धि , धर्म के लिए कष्ट सहन करना , क्षमाभाव , मन , इन्द्रिय एवं शरीर की सरलता , आस्तिबुद्धि , शास्त्रविषयक ज्ञान और परमात्मा का अनुभव ब्राह्मण का स्वभाव है। शूरवीरता , तेज , धैर्य , चतुरता , युद्ध में स्थिर रहना , दान और