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मीमांसा दर्शन में अर्थापत्ति प्रमाण की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन में अर्थापत्ति प्रमाण की अवधारणा    मीमांसा दर्शन में अर्थापत्ति प्रमाण की अवधारणा  अर्थापत्ति     न्याय दर्शन में अर्थापत्ति को प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है , किन्तु मीमांसक अन्य प्रमाणों की भाँति अर्थापत्ति को भी यथार्थ ज्ञान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं। मीमांसकों के अनुसार किन्हीं दो तत्त्वों के विरोधाभास को दूर करने के लिए जब एक तीसरे तत्त्व की कल्पना की जाती है तो जो ज्ञान प्राप्त होता है , वह यथार्थ ज्ञान है तथा इस ज्ञान को प्राप्त करने के प्रमाण को ही ' अर्थापत्ति ' कहते हैं। उदाहरणार्थ “ देवदत्त दिनभर भूखा रहता है , फिर भी दिनों - दिन मोटा होता जा रहा है। ” इन दो परस्पर विरोधी तत्त्वों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने के लिए हमें एक तीसरे तत्त्व की कल्पना करनी पड़ती है कि “ देवदत्त रात में क्या खाता है ?"     नैयायिक मीमांसकों पर आक्षेप लगाते हुए कहते हैं कि अर्थापत्ति कोई स्वतन्त्र प्रमाण