Posts

Showing posts with the label वैशेषिक दर्शन

वैशेषिक दर्शन का परमाणुकारणवाद या परमाणुवाद

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन का परमाणुकारणवाद या परमाणुवाद वैशेषिक दर्शन का परमाणुकारणवाद या परमाणुवाद      परमाणुवाद न्याय - वैशेषिक दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है , जिसके आधार पर वे विश्व की सावयव वस्तुओं की उत्पत्ति एवं विनाश की व्याख्या करते हैं। चूँकि यहाँ परमाणुओं के आधार पर भौतिक विश्व की सृष्टि एवं विनाश की व्याख्या की जाती है , इसलिए , उनका सृष्टि सम्बन्धी सिद्धान्त परमाणुवाद कहलाता है। महर्षि गौतम परमाणु को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि परं वा गुटे अर्थात् जिसे और अधिक विभाजित न किया जा सके , वही परमाणु है अतः स्पष्ट है कि परमाणु निरवयव है तथा निरवयव होने के कारण अविभाज्य है , अविभाज्य होने के कारण नित्य है।      वैशेषिक के अनुसार , संख्यात्मक दृष्टि से परमाणु अनन्त हैं तथा सभी परमाणु स्वभावत : निष्क्रिय हैं। यद्यपि परमाणु नित्य हैं , किन्तु इनसे उत्पन्न होने वाली समस्त सावयव वस्तुएँ अनित्य हैं। अत : परमाणु संसार की समस्त सावयव वस्तुओं के उपादा

वैशेषिक दर्शन का कारणता सिद्धान्त

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन का कारणता सिद्धान्त  वैशेषिक दर्शन का कारणता सिद्धान्त        कार्य के नियत रूप में पूर्ववर्ती को कारण कहा जाता है। स्पष्ट है कि कार्य के पहले कारण को होना ही चाहिए , किन्तु कारण के अतिरिक्त कार्य से पूर्व अन्य भी अनेक पदार्थ रह सकते हैं। उदाहरण के लिए घट बनाने से पूर्व घट बनाने की मिट्टी बैलगाड़ी में भी आ सकती है और गधे पर भी। किन्तु ये दोनों ही घड़े के कारण नहीं माने जाएंगे , क्योंकि वे घट के पूर्व नियत रूप से नहीं रहते। कारण के प्रकार सामान्यतया किसी कार्य को करने के दो कारण होते हैं - उपादान कारण और निमित्त कारण जैसे — कुम्हार मिट्टी से घड़ा बनाता है। यह कुम्हार निमित्त कारण तथा मिट्टी ( सामग्री ) उपादान कारण है , परन्तु वैशेषिक दर्शन में समवायी असमवायी एवं निमित्त। ये तीन कारण माने गए हैं , जो इस प्रकार हैं समवायी कारण     समवायी सम्बन्ध नित्य सम्बन्ध होता है . जो दो ऐसे पदार्थो

वैशेषिक दर्शन का असत्कार्यवाद सिद्धान्त

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन का असत्कार्यवाद सिद्धान्त  वैशेषिक दर्शन का असत्कार्यवाद सिद्धान्त      असत्कार्यवाद वैशेषिक दर्शन का कारण कार्य नियम है। पुनः वैशेषिक दर्शन के अनुसार कारण - कार्य नियम स्वयं - सिद्ध है। कारण किसी वस्तु का पूर्ववर्ती एवं कार्य उत्तरवर्ती होता है , परन्तु सभी पूर्ववर्ती को कारण  नहीं कहा जा सकता है। पूर्ववर्ती दो प्रकार के होते हैं- नियत पूर्ववर्ती अनियत पूर्ववर्ती नियत पूर्ववर्ती   वह पूर्ववर्ती जो घटना विशेष के पूर्व निरन्तर आता है , जैसे - वर्षा के पूर्व आकाश में बादल का रहना। अनियत पूर्ववर्ती       जो घटना के पूर्व कभी आता है , कभी नहीं आता है। वर्षा होने के पूर्व बच्चे का शोर करना अनियत पूर्ववर्ती है , क्योंकि जब - जब वर्षा होती है तब - तब बच्चे शोर नहीं करते। वैशेषिक के अनुसार , कारण नियत पूर्ववर्ती होता है।     कारण की एक अन्य विशेषता तात्कालिकता है अर्थात् जो पूर्ववर्ती घटना कार्य के ठीक पूर्व आयी हो ,

वैशेषिक दर्शन में अभाव पदार्थ की अवधारणा

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन में अभाव पदार्थ की अवधारणा  वैशेषिक दर्शन में अभाव पदार्थ की अवधारणा      न्याय - वैशेषिक दर्शन में अभाव को एक पदार्थ के रूप में स्वीकार किया गया है। इनके अनुसार किसी स्थान विशेष , काल विशेष में किसी वस्तु का उपस्थित नहीं होना ' अभाव ' है। यहाँ अभाव को एक पदार्थ के रूप में स्वीकार किया गया है , क्योंकि अभाव का शाब्दिक अर्थ ' नहीं होना। किसी वस्तु के अभाव को सूचित करता है , इसे ज्ञान का विषय बनाया जा सकता है , इसे नाम दिया जा सकता है। यदि अभाव को स्वीकार न किया जाए तो असत्कार्यवाद तथा मोक्ष की संगत व्याख्या सम्भव नहीं है। वैशेषिक में अभाव के दो प्रकार बताए गए हैं - अन्योन्याभाव तथा संसर्गाभाव को पुन : तीन भागों में बाँटा गया है — प्राग् भाव , प्रध्वंसाभाव तथा अत्यन्ताभाव।      न्याय वैशेषिक ने अपना उपरोक्त जो पदार्थ विचार प्रस्तुत किया है उसकी कई आधारों पर आलोचना होती है ; जैसे - शंकर का विचार है कि व