वैशेषिक दर्शन का कारणता सिद्धान्त

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वैशेषिक दर्शन का कारणता सिद्धान्त 

वैशेषिक दर्शन का कारणता सिद्धान्त  

     कार्य के नियत रूप में पूर्ववर्ती को कारण कहा जाता है। स्पष्ट है कि कार्य के पहले कारण को होना ही चाहिए, किन्तु कारण के अतिरिक्त कार्य से पूर्व अन्य भी अनेक पदार्थ रह सकते हैं। उदाहरण के लिए घट बनाने से पूर्व घट बनाने की मिट्टी बैलगाड़ी में भी आ सकती है और गधे पर भी। किन्तु ये दोनों ही घड़े के कारण नहीं माने जाएंगे, क्योंकि वे घट के पूर्व नियत रूप से नहीं रहते।

कारण के प्रकार

सामान्यतया किसी कार्य को करने के दो कारण होते हैं-

  1. उपादान कारण और
  2. निमित्त कारण

जैसेकुम्हार मिट्टी से घड़ा बनाता है। यह कुम्हार निमित्त कारण तथा मिट्टी (सामग्री) उपादान कारण है, परन्तु वैशेषिक दर्शन में

  1. समवायी
  2. असमवायी एवं
  3. निमित्त।

ये तीन कारण माने गए हैं, जो इस प्रकार हैं

समवायी कारण

    समवायी सम्बन्ध नित्य सम्बन्ध होता है. जो दो ऐसे पदार्थों के मध्य होता है जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता; जैसे-घड़े एवं मिट्टी के मध्य सम्बन्ध। घड़े को मिट्टी से पृथक् करना सम्भव नहीं होता। यहाँ मिट्टी समवायी कारण है। अन्य दर्शन इसे उपादान कारण कहते हैं।

असमवायी कारण

   जो समवाय सम्बन्ध से समवायी कारण में रहता हो तथा समवायी कार्य का जन्म हो, वह असमवायी कारण कहा जाता है; जैसेपट (कपड़ा) कार्य में तन्तुओं का रंगा

निमित्त कारण

     जिसके बिना कार्य उत्पन्न ही न हो सके, उसे निमित्त कारण कहते हैं। घड़े के प्रसंग में कुम्हार, उसका चाकदण्ड आदि निमित्त कारण हैं।

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