मीमांसा दर्शन में अनुमान की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
||||
मीमांसा दर्शन में अनुमान की अवधारणा |
मीमांसा दर्शन में अनुमान की अवधारणा
अनुमान
मीमांसा का अनुमान प्रमाण न्याय के अनुमान से मिलता है। न्याय में
अनुमान का शब्दार्थ किया गया है-पश्चाद्ज्ञान।
एक बात से दूसरी बात को देख लेना (अनु + ईशा) या एक
बात को जान लेने के बाद दूसरी बात को जान लेना (अनु-मतिकरण) पश्चाद्ज्ञान
या अनुमान कहलाता है। धुआँ को वहाँ अग्नि के होने का अनुमान लगाना इस प्रमाण का उदाहरण
है। इसलिए प्रत्यक्ष वस्तु (धुआँ) के आधार
पर अप्रत्यक्ष वस्तु (अग्नि) का ज्ञान प्राप्त
करना ही अनुमान की प्रक्रिया का आधार है।
---------
Comments
Post a Comment