मीमांसा दर्शन का निरीश्वरवाद
भारतीय दर्शन |
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मीमांसा दर्शन का निरीश्वरवाद |
मीमांसा दर्शन का निरीश्वरवाद
निरीश्वरवाद
पूर्व-मीमांसा दर्शन
में ईश्वर का स्थान अत्यन्त ही गौण है। पूर्व-मीमांसा
दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी ने ईश्वर का उल्लेख नहीं किया है जो एक अन्तर्यामी और सर्वशक्तिमान
हो। इनके अनुसार संसार की सृष्टि के लिए धर्म और अधर्म का पुरस्कार और दण्ड देने के
लिए ईश्वर को मानना भ्रान्तिमूलक है। इस प्रकार मीमांसा दर्शन में देवताओं के गुण या
धर्म की चर्चा नहीं हुई है। पूर्व-मीमांसा दर्शन
में ईश्वर का स्थान नहीं है, लेकिन देवताओं
की चर्चा है। देवताओं की कल्पना बलि-प्रदान के सन्दर्भ
में है। देवताओं को केवल बलि को ग्रहण करने वाले के रूप में ही माना गया है। उनकी उपयोगिता
केवल इसलिए है कि उनके नाम पर होम किया जाता है। चूँकि मीमांसा दर्शन में अनेक देवताओं
को माना गया है इसलिए मीमांसा को बहुदेववादी कहा जा सकता है। लेकिन देवताओं का अस्तित्व
केवल वैदिक मन्त्रों में ही माना गया है। विश्व में उनका कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं
है। देवताओं और आत्माओं के बीच क्या सम्बन्ध है यह भी नहीं स्पष्ट किया गया है। इन
देवताओं को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्र सत्ता नहीं दी गई है। यहाँ तक कि इन्हें उपासना
का विषय भी नहीं माना गया है।
कुमारिल और प्रभाकर ने भी कहा कि जगत की सृष्टि और विनाश में ईश्वर
की कोई भूमिका नहीं है। ईश्वर को विश्व का स्रष्टा, पालनकर्ता
और संहारकर्ता मानना भ्रामक है। कुमारिल ईश्वर को वेद का निर्माता भी नहीं मानते। कुमारिल
के अनुसार यदि वेद की रचना ईश्वर के द्वारा मानी जाए तो वेद संदिग्ध भी हो सकते हैं।
वेद अपौरुषेय हैं। वे स्वप्रकाश और स्वतः प्रमाण हैं। इसलिए कुछ विद्वानों ने मीमांसा
के देवताओं को महाकाव्य के अमर-पात्र की तरह
माना है। वे आदर्श पुरुष कहे जा सकते हैं। अतः पूर्व-मीमांसा
या मीमांसा दर्शन निरीश्वरवादी है।
बाद के मीमांसा के अनुयायियों ने ईश्वर को स्थान दिया है। उन्होंने
ईश्वर को. कर्मफल देने वाला तथा कर्म का संचालक कहा है। पाश्चात्य विद्वान्
प्रो.
मैक्समूलर
ने मीमांसा दर्शन को निरीश्वरवादी कहने में आपत्ति प्रकट की है। इनके अनुसार मीमांसा
ने ईश्वर के सृष्टि कार्य के विरुद्ध आक्षेप किया है, परन्तु
यह समझना कि मीमांसा अनीश्वरवाद है, गलत है। इसका
कारण यह है कि सृष्टि के अभाव में भी ईश्वर को माना जा सकता है। मीमांसा दर्शन वेद
पर आधारित है अर्थात् वेद में ईश्वर का पूर्णत: संकेत
है। अत: यह मानना कि मीमांसा दर्शन अनीश्वरवादी है सही प्रतीत नहीं होता
है। फिर वेदान्तदेशिक ने मीमांसा दर्शन में ईश्वर की कल्पना को और आगे बढ़ाया है।
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