मीमांसा दर्शन का सामान्य परिचय एवं साहित्य

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मीमांसा दर्शन का सामान्य परिचय एवं साहित्य

मीमांसा दर्शन का सामान्य परिचय एवं साहित्य

पूर्व-मीमांसा अथवा मीमांसा दर्शन

     मीमांसा दर्शन हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। इस शास्त्र को पूर्व-मीमांसा और वेदान्त को 'उत्तर मीमांसा' भी कहा जाता है। जैमिनी मुनि द्वारा रचित सूत्र होने से मीमांसा को 'जैमिनीय धर्म मीमांसा' कहा जाता है।

मीमांसा दर्शन

    भारतीय दर्शन में वेदों की महत्ता सर्वविदित है। वेदों को मान्यता देने के कारण सांख्य, योग, वैशेषिक, मीमांसा, न्याय एवं वेदान्त, ये षड्दर्शन आस्तिक कहे जाते हैं। इन षड्दर्शनों में मीमांसा दर्शन पूर्णत: अग्रणी है, क्योंकि यह वेदों की सत्ता को स्थापित करता है तथा पूर्णत: वेदों पर आधारित है।

     मीमांसा शब्द का सामान्य अर्थ 'विचार' करना है। भारतीय दर्शन के इतिहास में दो मीमांसा दर्शनों का उल्लेख मिलता है-पूर्व-मीमांसा एवं उत्तर मीमांसा। कालान्तर में इन्हें क्रमश: मीमांसा एवं वेदान्त के रूप में जाना जाता है। मीमांसा को पूर्व-मीमांसा कहने से स्पष्ट है कि यह वेदों के उपनिषद्-पूर्व भाग से सम्बन्धित है। उपनिषदों से सम्बन्धित दर्शन का नाम उत्तर मीमांसा (वेदान्त) है। वेदों के कर्मकाण्ड पर आधारित होने के कारण मीमांसा दर्शन को कर्म मीमांसा या धर्म मीमांसा भी कहा जाता है। इसके विपरीत वेदान्त वेदों के ज्ञानकाण्ड पर आधारित होने के कारण ब्रह्ममीमांसा भी कहलाता है।

मीमांसा दर्शन का उदय

     विद्वानों के अनुसार जब बौद्ध मत का उदय हुआ, तो वैदिक कर्मकाण्ड पर प्रश्नचिह्न लगने लगे। वैदिक कर्मकाण्ड को लेकर शंकाएँ एवं विवाद बढ़ गए। लोगों को सन्देह होने लगा कि वैदिक रीति-रिवाज, कर्मकाण्ड सब थोथे हैं, इनका कोई मूल्य नहीं है। हवन, बलि, यज्ञ इत्यादि अनावश्यक हैं, इनसे कोई लाभ नहीं होता। ऐसी स्थिति में वैदिक धर्म के अनुयायियों को आवश्यकता महसूस हुई कि वैदिक साहित्य में उपलब्ध ज्ञान का पुनः निरीक्षण एवं पुनर्निर्माण हो, ताकि लोगों के सामने उन्हें निर्दोष रूप में त्रुटिरहित रखा जा सके तथा बताया जा सके कि वैदिक कर्मकाण्ड क्या फल देने की शक्ति रखते हैं। ई. पू. चौथी शताब्दी में आचार्य जैमिनी ने ऐसा प्रयत्न किया। इनका ग्रन्थ जैमिनी सूत्र या मीमांसा सूत्र है। यह मीमांसा दर्शन का आधार है। जैमिनी को ही मीमांसा दर्शन का प्रणेता माना गया है।

मीमांसा दर्शन के आचार्य एवं साहित्य

     आचार्य जैमिनी के पश्चात् अनेक महान् आचार्य हुए जिन्होंने मीमांसा सूत्र पर भाष्य एवं टीकाएँ लिखीं। शबर स्वामी ने जैमिनी सूत्र पर शबरभाष्य लिखी जो मीमांसा दर्शन को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। शबरभाष्य पर मीमांसा दर्शन के दो परवर्ती आचार्यों प्रभाकर मिश्र एवं कुमारिल भट्ट ने टीकाएँ लिखीं। इन दोनों आचार्यों का मीमांसा दर्शन में महत्त्व है। इन दोनों के प्रभाव से मीमांसा दर्शन में दो सम्प्रदाय अस्तित्व में आए, जिन्हें भट्ट मीमांसा एवं प्रभाकर मीमांसा के नाम से जाना जाता है। इन्हें क्रमश: भाट्टमत एवं गुरुमत भी कहते हैं।

     भाट्टमत के संस्थापक आचार्य कुमारिल ने शबरभाष्य पर तीन विशालकाय वृत्ति ग्रन्थों की रचना की है, जिन्हें श्लोकवर्तिक, तन्त्रवर्तिक और टुप्टीका कहते हैं। पार्थसारथि मिश्र ने श्लोकवर्तिक पर न्याय रत्नाकर नामक टीका लिखी। मिश्रजी द्वारा रचित एक स्वतन्त्र ग्रन्थ 'शास्त्रदीपिका' अत्यन्त प्रसिद्ध है।

     गुरुमत के संस्थापक आचार्य प्रभाकर मिश्र हैं। इन्होंने शबरभाष्य पर 'वृहती' और 'लध्वी' नामक भाष्य लिखा। उनके शिष्य शालिकनाथ ने वृहती पर 'ऋजुविमला' नामक टीका लिखी। भावनाथ मिश्र ने 'नयविवेक' नामक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखकर प्रभाकर के विचारों की विस्तृत व्याख्या की। कालान्तर में चार अन्य टीकाएँ वरदराज की दीपिका, शंकर मिश्र की पंचिका, दामोदर सूरि की अलंकार और रन्तिदेव की तत्त्वविवेक लिखी गई। ये चारों टीकाएँ मीमांसा दर्शन को समझने के लिए उपयोगी हैं।

मीमांसीय आचार्य एवं साहित्य

साहित्य                       आचार्य

मुरारीमत                 - मुरारी मिश्र

त्रिपादी नीतिनयन      - मुरारी मिश्र

एकाद शाध्याधिकरण - मुरारी मिश्र

श्लोकवर्तिक            - कुमारिल भट्ट

तन्त्र-वर्तिक              - कुमारिल भट्ट

टुप्टीका                    - कुमारिल भट्ट

वृहती                     - प्रभाकर मिश्र

लध्वी                     - प्रभाकर मिश्र

दीपिका                  - वरदराज

वर्तिका भरण           - वेंकट दीक्षित

न्याय सुधा               - सोमेश्वर भट्ट

काशिका                 - सुचरित मिश्र

विधि विवेक             - मण्डन मिश्र

मीमांसानुक्रमणी       - मण्डन मिश्र

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