शिक्षा और धर्म ( Eucation and Religion )
शिक्षा और धर्म ( Eucation and Religion ) |
शिक्षा और धर्म ( Eucation and Religion )
प्राचीन भारत में शिक्षा और धर्म को एक दूसरे से भिन्न नहीं
समझा जाता था। शिक्षा को ही मनुष्य जीवन के अन्तिम उद्देश्य अर्थात मोक्ष की
प्राप्ति का साधन माना जाता था। आदिगुरु शंकराचार्य के अनुसार, “सः विद्या या
विमुक्तये” अर्थात शिक्षा वह है जो मुक्ति दिलाए। भारतीय मनीषी स्वामी विवेकानन्द
भी शिक्षा को धर्म से अलग नहीं समझते थे। उनके अनुसार “मनुष्य की अंतर्निहित
पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है”। ऋषि देव दयानंद के अनुसार सीखने की प्रक्रिया
गर्भावस्था से प्रारम्भ होती है और जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। उन्होंने शिक्षा को
आन्तरिक शुद्धि के रूप में माना है। स्वामी दयानंद के अनुसार ‘‘शिक्षा
वह है, जिससे मनुष्य-विद्या आदि शुभ गुणों को प्राप्त करें
और अविद्या आदि दोषों को त्याग कर सदैव आनन्दमय जीवन व्यतीत कर सके।’’
भारतीय शिक्षा की विकास विकास यात्रा
Ø राष्ट्रीय शिक्षा
नीति, 1968
- स्वतंत्र भारत में शिक्षा पर यह पहली नीति कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी।
- शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित किया गया।
- 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य और शिक्षकों का बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर फोकस।
- नीति ने प्राचीन संस्कृत भाषा के शिक्षण को
भी प्रोत्साहित किया, जिसे भारत की संस्कृति और विरासत का एक
अनिवार्य हिस्सा माना जाता था।
- शिक्षा पर केन्द्रीय बजट का 6 प्रतिशत व्यय करने का लक्ष्य रखा।
- माध्यमिक स्तर पर ‘त्रिभाषा
सूत्र’ लागू करने का आह्वान किया गया।
Ø राष्ट्रीय
शिक्षा नीति, 1986
- इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने
विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति
समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।
- इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च किया।
- इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त
विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली
का विस्तार किया।
- ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।
Ø राष्ट्रीय
शिक्षा नीति में संशोधन, 1992
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
में संशोधन का उद्देश्य देश में व्यावसायिक और तकनीकी कार्यक्रमों में प्रवेश के
लिये अखिल भारतीय आधार पर एक आम प्रवेश परीक्षा आयोजित करना था।
- इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर कार्यक्रमों में
प्रवेश के लिये सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (Joint Entrance
Examination-JEE) और अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (All
India Engineering Entrance Examination-AIEEE) तथा राज्य स्तर के
संस्थानों के लिये राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (SLEEE) निर्धारित की।
- इसने प्रवेश परीक्षाओं की बहुलता के कारण
छात्रों और उनके अभिभावकों पर शारीरिक, मानसिक और वित्तीय बोझ को कम
करने की समस्याओं को हल किया।
Ø राष्ट्रीय शिक्षा
नीति, 2020
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में
शिक्षा की पहुँच, समता, गुणवत्ता, वहनीयता और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया है। नई
शिक्षा नीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर देश की
जीडीपी के 6% हिस्से के बराबर निवेश का लक्ष्य रखा गया है। नई शिक्षा नीति के
अंतर्गत ही ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (Ministry
of Human Resource Development- MHRD) का नाम बदल कर ‘शिक्षा मंत्रालय’ (Education Ministry) करने को भी
मंज़ूरी दी गई है।
प्रमुख बिंदु
Ø प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित प्रावधान
- 3 वर्ष से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम का दो समूहों में विभाजन-
- 3 वर्ष से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये
आँगनवाड़ी/बालवाटिका/प्री-स्कूल (Pre-School) के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था
देखभाल और शिक्षा’ (Early Childhood Care and Education- ECCE) की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- 6 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 और 2 में शिक्षा प्रदान की जाएगी।
- प्रारंभिक शिक्षा को बहुस्तरीय खेल और गतिविधि आधारित बनाने को प्राथमिकता दी जाएगी।
- NEP में MHRD द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’
(National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की
स्थापना की मांग की गई है।
- राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा-3 तक के सभी बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने हेतु इस मिशन के क्रियान्वयन की योजना तैयार की जाएगी।
Ø भाषायी विविधता को संरक्षण
- NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में
मातृभाषा/ स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्यापन के माध्यम के रूप में अपनाने पर
बल दिया गया है, साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और
आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
- स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।
Ø पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार
- इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला
और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व
पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।
- कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक
शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी दी जाएगी।
- ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’
(National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा
‘स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’
(National Curricular Framework for School Education) तैयार की
जाएगी।
- छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किये जाएंगे। इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।
- छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये
मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक
एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment
Centre) की स्थापना की जाएगी।
- छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों
को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये ‘कृत्रिम
बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित
सॉफ्टवेयर का प्रयोग।
Ø शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार
- शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर लिये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति।
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद वर्ष 2022 तक
‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National
Professional Standards for Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा।
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for
Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।
- वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।
Ø उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान
- NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को
26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा
जाएगा।
- NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल
एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3
या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और
उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान
- किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाणपत्र, 2
वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की
डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)।
- विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त
अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक
बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा,
जिससे अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें
डिग्री प्रदान की जा सके।
- नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।
Ø भारत उच्च शिक्षा आयोग
- चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च
शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (Higher Education
Commission of India -HECI) का गठन किया जाएगा।
- HECI के कार्यों के प्रभावी और प्रदर्शितापूर्ण
निष्पादन के लिये चार संस्थानों/निकायों का निर्धारण किया गया है-
- विनियमन हेतु- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा
नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatory Council- NHERC)
- मानक निर्धारण- सामान्य शिक्षा परिषद (General Education
Council- GEC)
- वित पोषण- उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education
Grants Council-HEGC)
- प्रत्यायन- राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council- NAC)
------------
Comments
Post a Comment