बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)
बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)
बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)
महात्मा बुद्ध के अनुयायियों की संख्या आगे चलकर बहुत बढ़ गई
और ये कई संप्रदायों में विभक्त हो गए। धार्मिक मतभेद के कारण बौद्ध धर्म की दो
शाखाएं कायम हुईं जो हीनयान तथा महायान के नाम से प्रसिद्ध हैं। हीनयान का प्रचार
भारत के दक्षिण में हुआ। इसका अधिक प्रचार श्रीलंका थाईलैंड में है। पालि त्रिपिटक
ही हीनयान के प्रधान ग्रंथ हैं। महायान का प्रचार अधिकतर उत्तर के देशों में हुआ
है, इसके अनुयाई तिब्बत, चीन तथा जापान में अधिक पाए
जाते हैं। महायान का दार्शनिक विवेचन संस्कृत में हुआ है। अतः इसके ग्रंथों की
भाषा संस्कृत है।
बुद्ध निर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद वैशाली में संपन्न द्वितीय
बौद्ध संगीति में थेर (स्थविरवादी) भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को
पापभिक्खु कह कर संघ से बाहर निकाल दिया था। उन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ
बनाकर स्वयं को महासांघिक और थेरवादियों को हीनसांधिक नाम दिया। जिसने कालांतर में
महायान और हीनयान का रूप धारण किया। थेरवाद से महायान संप्रदायों के क्रमशः विकास
में कई शताब्दियाँ लगीं। सम्राट अशोक द्वारा लगभग 249 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र
में आहूत तृतीय बौद्ध संगीति में पाली तिपिटक का संकलन हुआ जिसका प्रचार अशोक के
पुत्र महेंद्र द्वारा श्रीलंका में किया गया जो अभी तक वहाँ प्रचलित हैं।
श्रीलंका में प्रथम शती ई.पू. में पाली तिपिटक को सर्वप्रथम
लिपिबद्ध किया गया। यही पालि तिपिटक (त्रिपिटक) अब सर्वाधिक प्राचीन त्रिपिटक के
रूप में उपलब्ध हैं। तृतीय संगीति के बाद से ही भारत में थेरवाद धीरे-धीरे लुप्त
होता गया और उसका स्थान सर्वास्तिवाद या वैभाषिक समुदाय ले लिया, इसका
त्रिपिटक और उसकी टीकाएं आदि संस्कृत में थीं जो मूल में नष्ट हो गई थी तथा चीनी अनुवाद
में सुरक्षित हैं। अश्वघोष के ग्रंथों में तथा महायानवैपुल्यसूत्रों में क्रमशः
विकसित होकर महायान नागार्जुन के माध्यमिक और असंग के योगाचार संप्रदायों के रूप
में प्रतिष्ठित हुआ। हीनयान में बुद्ध के उपदेशों का मर्म ना समझने के कारण क्षणिक
धर्मों को ही सत्य मानकर बहुत्ववादी वस्तुवाद का विकास हुआ जिसके अनुसार
पुद्गलनैरात्म्य द्वारा क्लेशावरण के क्षय पर बल दिया गया। महायान में, बुद्ध के उपदेशों के तात्विक अर्थ के आधार पर पुद्गल या जीवात्मा के साथ-साथ
भौतिक धर्मों की भी प्रातीतिक सत्ता और तात्विक असत्ता को स्वीकार करके पुद्गल
नैरात्म्य के साथ धर्मनैरात्म्य का भी प्रतिपादन किया गया एवं क्लेशावरण क्षय के
साथ साथ ज्ञेयावरण क्षय पर भी बल दिया गया है। हीनयान के अनुसार बुद्ध एक महापुरुष
थे जिन्होंने अपने प्रयत्नों से निर्वाण प्राप्त किया और निर्वाण प्राप्ति के
मार्ग का उपदेश दिया। महायान में बुद्ध को लोकोत्तर तथा ईश्वर स्थानापन्न बना दिया
गया। बुद्ध के अवतारों की कल्पना की गई। त्रिकाल के सिद्धांत को विकसित किया गया।
बुद्ध भक्ति की प्रतिष्ठा हुई। लोक कल्याण की भावना और महाकरुणा का विकास हुआ।
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