बौद्ध दर्शन का परिचय बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बुद्ध थे जो बचपन
में सिद्धार्थ कहलाते थे। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में हिमालय तराई के कपिलवस्तु
नामक स्थान में इनका जन्म हुआ था। जन्म-मरण के दृश्यों को देखने से उनके मन में
विश्वास पैदा हुआ कि संसार में केवल दुःख ही दुःख है। अतः दुःख से मुक्ति पाने के
लिए इन्होंने सन्यास ग्रहण किया। सन्यासी बन कर इन्होंने दुःखों के मूल कारणों को
तथा उनसे मुक्त होने के उपायों को जानने का प्रयास किया। बुद्ध का समय ईसा पूर्व
छठी शताब्दी कहा जाता है। उनके जन्म का वर्ष बौद्ध परंपरा अनुसार लगभग 624 ईसा
पूर्व तथा अन्य विद्वानों के अनुसार 566 ईसा पूर्व के आसपास होना चाहिए। किंतु यह
सिद्ध है कि भगवान बुद्ध का महाभिनिष्क्रमण (गृह त्याग और परिव्राजकत्व) से लेकर
महापरिनिर्वाण तक का समय छठी सदी ईसा पूर्व है। संन्यास के बाद 6 वर्षों की कठिन
तपस्या और साधना के बाद लगभग 35 वर्ष की आयु में गया के समीप बोधि वृक्ष के नीचे
अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाले ज्ञानसूर्य का साक्षात्कार कर 'सम्यक्
संबुद्ध' बने। फिर वे वाराणसी के पास ऋषिपत्तन में सारनाथ गए
और वहाँ पांच भिक्षुओं को उन्होंने अपना शिष्य बना कर अपने साक्षात्कृत सत्य का
सर्वप्रथम उपदेश दिया, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन की संज्ञा दी
गई है। यहीं से बौद्ध धर्म का प्रारंभ हुआ।
बौद्ध दर्शन का साहित्य
बौद्ध दर्शन का साहित्य बौद्ध दर्शन का साहित्य त्रिपिटकों में
संग्रहीत है। त्रिपिटकों के अंतर्गत विनय पिटक, सुत्त पिटक तथा अभिधम्म पिटक
हैं। विनय पिटक में संघ के नियमों का, सुत्त पिटक में बुद्ध
के वार्तालाप और उपदेशों तथा अभिधम्म पिटक में दार्शनिक विचारों का संग्रह हुआ है।
इन पिटको में केवल प्राचीन बौद्ध धर्म का वर्णन मिलता है। इनकी भाषा पालि है।
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