वैशेषिक दर्शन में समवाय की अवधारणा
भारतीय दर्शन |
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वैशेषिक दर्शन में समवाय की अवधारणा |
वैशेषिक दर्शन में समवाय की अवधारणा
यह नित्य सम्बन्ध सूचक पदार्थ है। यह नित्य सम्बन्ध दो ऐसे पदार्थों
में पाया जाता है जो सदैव साथ साथ रहते हैं। इनमें से एक पदार्थ ऐसा होता है जो दूसरे
पर आश्रित होकर रहता है। ये दोनों पदार्थ एक-दूसरे
से अपृथक् होते हैं; जैसे-द्रव्य और गुण, भाग और पूर्ण, क्रियावान
और क्रिया, विशेष और सामान्य, नित्य द्रव्य
और विशेष आदि। वैशेषिकों ने समवाय को एक भाव पदार्थ के रूप में स्वीकार किया है तथा
कहा है कि जिन दो पदार्थों के बीच समवाय सम्बन्ध पाया जाता है यदि उन्हें पृथक् किया
जाए तो उनमें से एक का विनाश अपरिहार्य है।
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