महाभारत ( Mahabharat ) की दण्ड नीति

महाभारत ( Mahabharat ) की दण्ड नीति

महाभारत ( Mahabharat ) की दण्ड नीति

    महाभारत का ज्ञान के आधार पर चार विभाग है – दण्डनीति, आन्वीक्षिक, त्रयी (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद) और वार्ता। दण्डनीति की रचना ब्रह्मा ने की जिसका विवेच्य विषय ‘राजधर्म’ है। महाभारत में दण्डनीति ‘शान्ति पर्व’ के अन्तर्गत विवेच्य है जब भीष्म शर-शैय्या पर लेटे थे तब युधिष्ठिर के आग्रह पर राजधर्म का उपदेश देते है। महाभारत की दण्डनीति के अनुसार दण्ड राज्य की शक्ति है जिसे धारण कर राजा राज्य में तीन पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ और काम की स्थापना करता है। महाभारत में दण्डनीति के अन्तर्गत न्याय प्रशासन के रूप में ‘धर्मस्थिथर्य’ तथा ‘कंटक शोधन’ का वर्णन मिलता है। सभा में बैठकर प्रजा के विभिन्न विवादों का निर्णय राजा के द्वारा किया जाता था। महाभारत में 18 प्रकार के विवादों का वर्णन मिलता है। समाज को वर्णसंकर से बचाने के लिए दण्ड-व्यवस्था का वर्णन स्त्री-संग्रहण में मिलता है। दण्ड-व्यवस्था में वाग्दण्ड, धिक्कारदण्ड, धनदण्ड और वधदण्ड प्रमुख है। न्याय सभा में गवाहों द्वारा सत्य कथन के लिए शपत-ग्रहण की व्यवस्था थी। मिथ्याभाषण करने वालों का अत्याधिक दोष समझा गया है और उनके लिए अलग से दण्ड व्यवस्था थी। 

-----------

Comments

Popular posts from this blog

वेदों का सामान्य परिचय General Introduction to the Vedas

वैदिक एवं उपनिषदिक विश्व दृष्टि

मीमांसा दर्शन में अभाव और अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा