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महाभारत ( Mahabharat ) में युधिष्ठर और नारद के प्रश्न |
महाभारत ( Mahabharat ) में युधिष्ठर और नारद के प्रश्न
महाभारत के शान्ति पर्व के 'राजधर्मानुशासन पर्व'
के अन्तर्गत अध्याय-1 के अनुसार युधिष्ठिर के पास नारद आदि
महर्षियों का आगमन होता है, जिसमें नारद जी द्वारा युधिष्ठिर
से राजनीति के सन्दर्भ में कुछ प्रश्न किए जाते हैं। ये प्रश्न स्वयं में इतने
सारगर्भित होते हैं कि प्रश्न से अधिक इन्हें उत्तर के रूप में जाना जा सकता है ।
Ø युधिष्ठर और नारद के प्रश्न
- क्या तुम्हारा धन, तुम्हारे
(यज्ञ, दान तथा कुटुम्ब रक्षा आदि) आवश्यक कार्यों के
निर्वाह के लिए पूरा पड़ जाता है?
- क्या धर्म में तुम्हारा मन प्रसन्नतापूर्वक
लगता है?
- क्या तुम्हें इच्छानुसार सुख-भोग प्राप्त
होता है?
- तुम्हारे मन को (किन्हीं दूसरी वृत्तियों
द्वारा) आघात या विक्षेप नहीं पहुँचता है?
- क्या तुम ब्राह्मण, वैश्य
और शूद्र वर्णों की प्रजाओं के प्रति अपने पिता पितामहों द्वारा व्यवहार में लाई
हुई धर्मार्थयुक्त उत्तम एवं उदारवृत्ति का व्यवहार करते हो?
- क्या तुम धन के लोभ में पड़कर धर्म को केवल
धर्म में संलग्न रहकर, धन या आसक्ति ही जिसका बल है, उस काम भोग के सेवन द्वारा धर्म और अर्थ दोनों को हानि तो नहीं पहुँचाते?
- क्या तुम त्रिवर्ग सेवन के उपयुक्त समय का
ध्यान रखते हो, अतः काल का विभाग नियत करके और उचित समय पर सदा धर्म,
अर्थ एवं काम का सेवन करते हो?
- क्या तुम राजोचित षाड्गुण्य नीति द्वारा
शत्रुओं तथा उनके समस्त हितैषियों पर दृष्टि रखते हो?
- क्या तुम अपनी और शत्रु की शक्ति को अच्छी
तरह समझकर, यदि शत्रु प्रबल हुआ, तो उसके साथ
सन्धि बनाए रखकर अपने धन और कोष की वृद्धि के लिए आठ कर्मों का सेवन करते हो?
- क्या तुम्हारे राज्य के धनी लोग बुरे व्यसनों
से बचे रहकर सर्वथा तुमसे प्रेम करते हैं?
- क्या तुम मित्र, शत्रु
और उदासीन लोगों के सम्बन्ध में ज्ञान रखते हो कि वे कब क्या करना चाहते हैं?
- क्या तुम उपयुक्त समय का विचार करके ही
सन्धि-विग्रह की नीति का सेवन करते हो?
- क्या तुम्हें इस बात का अनुमान है कि उदासीन
तथा मध्यम व्यक्तियों के प्रति कैसा बर्ताव करना चाहिए?
- क्या तुमने अपने स्वयं के समान विश्वसनीय वृद्ध, शुद्ध
हृदय वाले, किसी बात को अच्छी तरह समझाने वाले, उत्तम कुल में उत्पन्न और अपने प्रति अत्यन्त अनुराग रखने वाले पुरुषों को
ही मन्त्री बना रखा है?
इस प्रकार देवर्षि नारद द्वारा युधिष्ठिर से राजधर्म, समाज
धर्म तथा नीति सम्बन्धी, आचार-विचार, योग-विग्रह,
आसन-यान आदि विभिन्न पहलुओं के, जो राजा से
सम्बन्धित होते हैं, सन्दर्भ में उपदेश युक्त प्रश्न पूछे ।
कुरुश्रेष्ठ महात्मा, राजा युधिष्ठिर ने ब्रह्मा के पुत्रों
में श्रेष्ठ नारद जी का यह वचन सुनकर उनके दोनों चरणों में प्रणाम एवं अभिवादन
किया और सन्तुष्ट होकर नारद जी से बोले- “देवर्षि! जैसा आपने
उपदेश दिया है, वैसा ही करूँगा। आपके इस प्रवचन से मेरी
प्रज्ञा और भी बढ़ गई है”।
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