जैन दर्शन का अनेकांतवाद / Anekantavada of Jain Philosophy
जैन दर्शन का अनेकांतवाद / Anekantavada of Jain Philosophy
जैन दर्शन का अनेकांतवाद / Anekantavada of Jain Philosophy
जैन दर्शन के अनुसार, - द्रव्य के स्वरूप का निर्धारण किसी एक
दृष्टि से नहीं किया जा सकता बल्कि यह कार्य अनेक दृष्टि से ही सम्भव है – ‘न
एकांतः अनेकांतः”। इस आधार पर जैन दर्शन जैन दर्शन कहता है – “अनन्त धर्मकं वस्तु”
अर्थात प्रत्येक द्रव्य अनन्त धर्मों से युक्त है। द्रव्यों में ये अनन्त धर्म दो
प्रकार से विभाग है – नित्य धर्म अर्थात स्वरूप धर्म और अनित्य धर्म अर्थात आगंतुक
धर्म। इन दोनों प्रकार के धर्मों को क्रमशः गुण और पर्याय कहा गया है। एक सामान्य
व्यक्ति द्रव्य के इन अनन्त धर्मों को नहीं जान सकता परन्तु केवली अर्थात जिसने
कैवल्य प्राप्त कर लिए वह द्रव्य के सभी धर्मों का ज्ञाता होता है।
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