बौद्ध धर्म में ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा / Brahman and Shramana Traditions in Buddhism

बौद्ध धर्म में ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा / Brahman and Shramana Traditions in Buddhism

बौद्ध धर्म में ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा / Brahman and Shramana Traditions in Buddhism

    भारत में प्राचीन काल से ही दो मुख्य परम्पराएं देखने को मिलती है। एक ब्रह्मण परम्परा और दूसरी श्रमण परम्परा। ब्रह्मण परम्परा के उपासक मूलतः ब्रह्मण जाति के लोग थे जो वेदों को प्रमुख स्रोत मानते थे और उसे ईश्वरीय ज्ञान का आधार मानते थे। वे वैदिक देवताओं की पूजा-अर्चना करते थे। वे कर्मकाण्ड में विश्वास रखते थे तथा वर्णव्यवस्था को स्वीकार करते थे। किन्तु श्रमण-परम्परा को मानने वालों ने वेदों के स्थान पर लोक-प्रचलित मान्यताओं, कथाओं को अपनाया। वैदिक ऋषियों की जगह योगी और तपस्वियों को माना तथा वैदिक कर्मकाण्ड के स्थान पर चिन्तन, मनन, तप, संयम, त्याग और ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ समझा। बौद्ध धर्म और जैन धर्म इसी श्रमण-परम्परा के अनुगामी सिद्ध हुए एवं इन्हीं धर्मों से निःसृत कथाएं, उपदेशोंक्तियाँ आदि बौद्ध कथा/जातक कथा, जैन कथा/आगम कथा की संज्ञा दी गई।

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