बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य / Four Noble Truths of Buddhism

बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य / Four Noble Truths of Buddhism

 बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य / Four Noble Truths of Buddhism

    ‘चार आर्य सत्य’ गौतम बुद्ध के व्यवहारिक दर्शन को प्रकट करने वाला विचार है। इन चरों आर्य सत्यों में दुःख क्या है तथा उसका निवारण कैसे हो पर प्रकाश डाला गया है। बुद्ध संसार के लोगों से पूछते है की “अंधकार से घिरे हुए तुम लोग दीपक क्यों नहीं खोजते हो? और कहते है कि 'अप्प दीपो भव' अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। अतः दीपक खोजने से स्वयं दीपक बनने का दर्शन इन चार आर्य सत्यों में निहित है जिसका वर्णन इस प्रकार है –

  1. प्रथम आर्य सत्य – सर्वं दुःखम् अर्थात सब और दुःख है।
  2. द्वितीय आर्य सत्य – दुःख समुदयः अर्थात दुःख के कारण
  3. तृतीय आर्य सत्य – दुःख निरोधः अर्थात दुःख का नाश हो सकता है।
  4. चतुर्थ आर्य सत्य – दुःख निरोगमिनी प्रतिपद् अर्थात दुःखनिरोध का मार्ग।

    वृद्ध, रोगी एवं मृत व्यक्ति को देखकर बुद्ध सर्वस्व दुःख की अनुभूति हुई और उन्होंने दुनिया के लोगों को कहा कि “हमारी अनादिकाल से चली आने वाली इस महायात्रा में हमने जीतने आँसू बहाए है वह चार महासागरों के जल से अधिक है”। आगे वे कहते है कि “दुःख तो संसार में ऐसे घुला-मिला है जैसे समुद्र के पानी में नमक होता है”। इसलिए बुद्ध संसार के लोगों से पूछते है कि “संसार में आग लगी है तब आनन्द मनाने का अवसर कहाँ है? बस इसी भाव में यह प्रथम आर्य सत्य दिया। इस दुःख का मुख्य कारण बुद्ध ने तृष्णा कहा है। बुद्ध कहते है “हे भिक्षुओं, तृष्णा या वासना ही दुःख का मूल कारण है, यह प्रबल तृष्णा ही है जिसके कारण बार-बार जन्म होता है और उसी के साथ इन्द्रिय सुख आते है, जिसकी पूर्ति जहाँ-तहाँ से हो जाती है”। यह तृष्णा तीन प्रकार की है –

  1. भव तृष्णा अर्थात जीवित रहने की इच्छा।
  2. विभव तृष्णा अर्थात वैभव प्राप्त करने की इच्छा।
  3. काम तृष्णा अर्थात इन्द्रिय सुख की इच्छा ।

    इसी तृष्णा को कारण बताकर बुद्ध ने दूसरे आर्य सत्य का उपदेश दिया है और तीसरे उपदेश में कहा है कि इस तृष्णा को समाप्त किया जा सकता है अर्थात दुःख का नाश हो सकता है। बुद्ध संसार के लोगों से कहते है कि “जो भयंकर तृष्णा को जीत लेता है, उससे दुःख कमल-पत्र से भरे जल की बूंदों के समान दूर हो जाते है। तृष्णा की जड़ों को खोद डालो ताकि वह ललचाने वाली तुम्हें बार-बार न पिसे”। इस भयंकर तृष्णा को समाप्त करने के लिए बुद्ध ने संसार को चौथा उपदेश दिया और कहा कि अपने जीवन को अष्टांग मार्ग पर ले चलो। यह अष्टांग मार्ग तुम्हें अविद्या से निर्वाण अर्थात मोक्ष की और ले जाएगा। इस अष्टांग मार्ग के साधक के लिए बुद्ध भिक्षुकों को त्रिशिक्षा का उपदेश देते है– शील, समाधि और प्रज्ञा। यही वह विशुद्ध मार्ग है जिसपर चलकर तृष्णा को पूर्णतः जीता जा सकता है।

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