प्रभाकर का अख्यातिवाद
भारतीय दर्शन |
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प्रभाकर का अख्यातिवाद |
प्रभाकर का अख्यातिवाद
अख्यातिवाद
भ्रम के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रभाकर द्वारा किया गया। प्रभाकर
कट्टर वस्तुवादी हैं, क्योंकि इनके अनुसार भ्रम असत् है। इसके मूल में इनकी यह मान्यता
है कि इन्द्रियानुभव के पश्चात् प्राप्त होने वाले समस्त ज्ञान प्रमारूप हैं। प्रभाकर
की मान्यता है कि भ्रम के समय मन में दो आंशिक तथा अपूर्ण वृत्तियाँ होती हैं, एक वस्तु
का प्रत्यक्ष तथा दूसरी अवस्तु का स्मरण। मन इन दोनों वृत्तियों को आपस में जोड़ देता
है। परिणामस्वरूप भ्रम की अवगति होती है। अत: प्रभाकर
का मत है कि जब ज्ञान ही नहीं होता तो भ्रम को मिथ्या ज्ञान कह ही नहीं सकते।
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