अनुमान प्रमाण में व्याप्ति

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अनुमान प्रमाण में व्याप्ति

अनुमान प्रमाण में व्याप्ति

     प्रमा प्रकार के ज्ञान के रूप में अनुमान प्रमाण की वैधता को चार्वाक दर्शन के अतिरिक्त भारतीय दर्शन के सभी सम्प्रदाय स्वीकार करते हैं। अनुमान ज्ञान व्याप्ति पर आधारित है। व्याप्ति अनुमान का प्राण है। व्याप्ति के अभाव में अनुमान का ज्ञान सम्भव नहीं है। अनुमान की प्रणाली में व्याप्ति महत्त्वपूर्ण है। व्याप्ति से तात्पर्य है-हेतु एवं साध्य का व्यापक सम्बन्ध। यह हेतु एवं साध्य का अनौपाधिक नियत साहचर्य सम्बन्ध है; जैसे-

जहाँ-जहाँ धुआँ है,

वहाँ-वहाँ आग होती है।

    उपरोक्त कथन एक व्याप्ति वाक्य है। यह वाक्य धुएँ (हेतु) एवं आग (साध्य) के मध्य साहचर्य सम्बन्ध को व्यक्त करता है। इस प्रकार हेतु एवं साध्य में जो स्वाभाविक अविच्छेद्य एवं व्यापक सम्बन्ध होता है, उसे व्याप्ति कहते हैं। व्याप्ति से सम्बन्धित पदों में एक व्याप्य होता है एवं दूसरा व्यापक। अत: व्याप्ति व्याप्य एवं व्यापक का स्वाभाविक सम्बन्ध है; जैसे-धुएँ एवं आग की व्याप्ति में धुआँ, व्याप्य एवं आग व्यापक है, क्योंकि जहाँ धुआँ होगा, वहाँ आग अवश्य होगी। संसार में ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं है जहाँ धुएँ के साथ अग्नि न हो, परन्तु यह अवश्य सम्भव है कि अग्नि तो हो, परन्तु धुआँ न हो। उदाहरण के लिए तपा हुआ आग का गोला। हेतु एवं साध्य में व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध एवं नियत साहचर्य सम्बन्ध ही व्याप्ति है।

     व्याप्ति उपाधिरहित नियत साहचर्य सम्बन्ध है; जैसे- जहाँ धुआँ है, वहाँ आग है, इसमें व्याप्ति अनौपाधिक है, क्योंकि साध्य (आग) बिना किसी उपाधि या शर्त के हेतु (धुएँ) का अनुगामी है, परन्तु आग एवं धुएँ का सम्बन्ध सोपाधिक है, क्योंकि आग धुएँ का अनुगामी तभी होगा, जब जलावन आर्द्र होगा। अत: यथार्थ व्याप्ति के लिए हेतु एवं साध्य के मध्य का सम्बन्ध अनौपाधिक होना चाहिए।

व्याप्ति के प्रकार

व्याप्ति के दो प्रकार होते हैं-

  1. सम व्याप्ति
  2. विषम व्याप्ति

सम व्याप्ति 

    जब समान विस्तार वाले दो पदों में व्याप्ति सम्बन्ध होता है अर्थात् व्याप्य से व्यापक का अनुमान सम्भव हो तथा व्यापक से व्याप्य का भी अनुमान सम्भव हो तभी दोनों पदों में व्याप्ति सम व्याप्ति कहलाती है; जैसे-अभिधेय और प्रमेय, जो अभिधेय है, वह प्रमेय है और जो प्रमेय है, वह अभिधेय है।

विषम व्याप्ति 

     न्यूनाधिक विस्तार वाले दो पदों में जब व्याप्ति का सम्बन्ध होता है तो उसे विषम व्याप्ति या असम व्याप्ति कहते हैं; जैसे-धुएँ एवं आग में। जहाँ धुआँ है, वहाँ आग हैयह सामान्य कथन सत्य है, परन्तु जहाँ आग है, वहाँ धुंआ हैयह कथन सत्य नहीं है। अत: यदि व्याप्य एवं व्यापक न्यूनाधिक विस्तार वाले हों, व्याप्य से व्यापक का अनुमान किया जा सके, परन्तु व्यापक से व्याप्य का अनुमान न किया जा सके तो दोनों में व्याप्ति विषम व्याप्ति होती है। व्याप्ति के विषय में सर्वव्यापी निर्णयों पर आगमनात्मक सम्बन्धों की उपलब्धि पर चार्वाक कहते हैं कि व्याप्ति अनुभव के दौरान हमारे मन में स्थापित हो जाने वाले साहचर्यों का फल है। इस प्रकार व्याप्ति-ग्रहण विशुद्ध मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसमें तार्किक अनिवार्यता का होना आवश्यक नहीं है। बौद्ध दार्शनिक अनुमान को ज्ञान का प्रमाण स्वीकार करते हैं तथा व्याप्ति को अनुमान का आधार मानते हैं।

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