चित्त और अचित्त ब्रह्म के दो भाग हैं, इस विचार को किसने ठीक ठहराया है ?
भारतीय दर्शन |
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प्रश्न - चित्त और अचित्त ब्रह्म के दो भाग हैं, इस विचार को किसने ठीक ठहराया है ?
- शंकर
- मध्व
- रामानुज
- जैमिनि
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उत्तर - ( c ) चित्त और अचित्त ब्रह्म के दो भाग हैं, यह विचार रामानुज का है। रामानुज के अनुसार ब्रह्म जगत का उपदान एवं निमित्त कारण है। ब्रह्म के दो रूप है - कारणावस्था एवं कार्यावस्था। कारणावस्था में ब्रह्म अविकृत रहता है। इस अवस्था में सृष्टि कारण रूप में ब्रह्म में ही अव्यक्त रूप में विद्यमान रहती है। ब्रह्म की कार्यावस्था सृष्टि का व्यक्त रूप है। इस समय ब्रह्म अपनी माया शक्ति द्वारा चित्त एवं अचित्त को स्थूल रूप में प्रकट कर देता है। इस प्रकार चित और अचित्त ब्रह्म के ही दो रूप है। चित से चेतन जीव जगत एवं अचित्त से जड़ जगत की उत्पत्ति होती है।
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