के सी भट्टाचार्य के विचारों में स्वराज

के सी भट्टाचार्य के विचारों में स्वराज 

के सी भट्टाचार्य के विचारों में स्वराज 

    के सी भट्टाचार्य ने Swaraj in Ideas (विचारों का स्वराज) पर अपना एक व्याख्यान दिया जो बाद में पुस्तक के रूप में लिखा गया। इस व्याख्यान में उन्होंने दर्शनशास्त्र को स्वतः प्रमाणित का स्व-प्रमाणित विस्तारण कहा जहाँ स्वयं का स्वयं विकास होता है। कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य कहते है कि यदि कोई बाहरी देश आक्रमण करे तो उसका प्रतिकार लड़कर किया जाता है और सरलता से उसे रोका जा सकता है परन्तु जब हम मन में किसी दूसरे देश के विचारों एवं संस्कृति के प्रति असहजता को अनुभव करना बंद कर देते है तो वास्तविक गुलामी की शुरुआत होती है। ऐसी स्थति में जो वास्तव में अमंगल एवं अकल्याणकारी का प्रतीक होता है, वही हमें श्रेष्ट एवं प्रिय प्रतीत होने लगता है। यह दासता का निकृष्टतम रूप होता है। सांस्कृतिक अधीनता मात्र किसी पराई संस्कृति को अपनाने तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि वह अपनी संस्कृति का उन्मूलन भी करने लगती है। इसी दासता और दुर्गति से बचने के लिए हमें ‘विचारों में स्वराज’ को जीवंत रखना होगा। 

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