Tuesday, May 17, 2022

के सी भट्टाचार्य का मायावाद

के सी भट्टाचार्य का मायावाद 

के सी भट्टाचार्य का मायावाद 

    कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य ने शंकराचार्य के माया सिद्धान्त की विवेचना में दो प्रकार के निषेधों का उल्लेख किया है। इनमें पहले प्रकार के निषेध के अन्तर्गत तीन माँग उठती हैं। अत: सब को मिलाकर मुख्यत: चार प्रकार के निषेध स्पष्ट होते हैं। यहाँ इन चार प्रकार के निषेधों में चार प्रकार की दार्शनिक मनोवृत्ति, चार प्रकार की दार्शनिक दृष्टि प्रकाश में आती है। यहाँ 'निषेध' का अर्थ है – ‘जो निषेधित हुआ, उसका भ्रामक रूप स्पष्ट होता है।' कृष्णचन्द्र ने चारों सम्भावनाओं का उल्लेख किया है –

1.    जो कुछ भी देखा गया है, उसी का निषेध होता है।

2.   भ्रम में जो कुछ दिखाई देता है, वह भ्रामक तो है, किन्तु मूल तथ्य से भिन्न है।

3.   जो भ्रम में दिखाई देता है अर्थात् जो निषेधित होता है, वह तथ्य ही है।

4.   जो निषेधित होता है वह कोई सत्ता नहीं।

-------------


No comments:

Post a Comment

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...