के सी भट्टाचार्य का मायावाद
के सी भट्टाचार्य का मायावाद |
के सी भट्टाचार्य का मायावाद
कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य ने शंकराचार्य के माया सिद्धान्त की
विवेचना में दो प्रकार के निषेधों का उल्लेख किया है। इनमें पहले प्रकार के निषेध
के अन्तर्गत तीन माँग उठती हैं। अत: सब को मिलाकर मुख्यत: चार प्रकार के निषेध
स्पष्ट होते हैं। यहाँ इन चार प्रकार के निषेधों में चार प्रकार की दार्शनिक
मनोवृत्ति, चार प्रकार की दार्शनिक दृष्टि प्रकाश में आती है। यहाँ 'निषेध' का अर्थ है – ‘जो निषेधित हुआ, उसका भ्रामक रूप स्पष्ट होता है।' कृष्णचन्द्र ने
चारों सम्भावनाओं का उल्लेख किया है –
1.
जो कुछ भी देखा गया है, उसी
का निषेध होता है।
2.
भ्रम में जो कुछ दिखाई देता है, वह
भ्रामक तो है, किन्तु मूल तथ्य से भिन्न है।
3.
जो भ्रम में दिखाई देता है अर्थात् जो
निषेधित होता है, वह तथ्य ही है।
4.
जो निषेधित होता है वह कोई सत्ता नहीं।
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