एम एन राय का उग्र मानवतावाद
एम एन राय का उग्र मानवतावाद |
एम एन राय का उग्र मानवतावाद
एम एन राय के दर्शन में उग्र मानवतावाद का विशेष महत्व है ।
इन्होंने अपनी ‘द प्रॉबलम ऑफ फ्रीडम’, ‘साइंटिफिक पॉलिटिक्स’, ‘रिजन’ और
‘रोमेन्टिसीज्म एंड रिवाल्यूशन’ में मानवतावाद सम्बन्धी विचारों को व्यक्त किया है
।
इनके उग्र मानवतावाद को ‘वैज्ञानिक मानवतावाद’, ‘नव
मानवतावाद’, ‘आमूल परिवर्तनवादी मानवतावाद’ एवं ‘पूर्ण मानवतावाद’ भी कहते है । राय
के अनुसार, "मानवतावाद स्वतन्त्रता के प्रयोग की अनन्त
सम्भावनाओं में आस्था रखते हुए उसे किसी ऐसी विचारधारा के साथ नहीं बाँधना चाहता,
जो किसी पूर्व निर्धारित लक्ष्य की सिद्धि को ही उसके जीवन का ध्येय
मानती है ।” राय ने मानव विकास के सिद्धान्तों में विश्वास
करते हुए यह तर्क दिया है कि स्वयं मनुष्य का अस्तित्व भौतिक सृष्टि के विकास का
परिणाम है । भौतिक सृष्टि स्वयं में निश्चित नियमों से बँधी हुई है, इसलिए इसमें सुसंगति पाई जाती है । मानव के अस्तित्व में यह सुसंगति
तर्कशक्ति के रूप में सार्थक होती है । मनुष्य का विवेक भौतिक जगत में व्याप्त
सुसंगति की ही प्रतिध्वनि है । यह मनुष्य के जीव वैज्ञानिक विकास की परिणति है ।
अपने विवेक से प्रेरित होकर मनुष्य जिन सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण करता है,
उनमें भी वे ऐसी सुसंगति लाने का प्रयास करते हैं, जो नैतिकता के रूप में व्यक्त होती है । राय कहते हैं कि आज देश में जो
संघर्ष, निर्धनता, बेरोजगारी एवं
अविश्वास व्याप्त हैं, उनका प्रमुख कारण संकुचित राष्ट्रीयता
की भावना है । विश्व में एकता और शान्ति तभी स्थापित हो सकती है, जब हम केवल अ पने देश के हित की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि
सम्पूर्ण मानव जाति के हित की दृष्टि से सामाजिक, आर्थिक एवं
राजनैतिक चिन्ताओं पर विचार करेंगे ।
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