एम एन राय का भौतिकवाद
एम एन राय का भौतिकवाद |
एम एन राय का भौतिकवाद
मानवेन्द्र नाथ राय पूर्णतः भौतिकवादी तथा निरीश्वरवादी
दार्शनिक थे । उनका मत था कि सम्पूर्ण जगत की व्याख्या भौतिकवाद के आधार पर की जा
सकती है । इसके लिए ईश्वर जैसी कोई शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार करने की कोई
आवश्यकता नहीं है । प्राकृतिक घटनाओं के समुचित प्रेक्षण तथा सूक्ष्म विश्लेषण
द्वारा ही अनेक वास्तविक स्वरूप और कारणों को समझा जा सकता है । विश्व का मूल
तत्त्व भौतिक द्रव्य अथवा पुद्गल है और सभी वस्तुएँ इसी पुद्गल के अन्तर्गत
रूपान्तरित हैं, जो निश्चित प्राकृतिक नियमों के द्वारा नियन्त्रित होते
हैं । जगत के मूल आधार इस पुद्गल के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की अन्तिम सत्ता
नहीं हैं । राय मानवीय प्रत्यक्ष को ही सम्पूर्ण ज्ञान का मूल आधार मानते हैं । इस
सम्बन्ध में वे कहते हैं कि “मनुष्य द्वारा जिस वस्तु का
प्रत्यक्ष सम्भव है, वास्तव में, उसी
का अस्तित्व है और मानव के लिए जिस वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान सम्भव नहीं है,
उसका अस्तित्व भी नहीं है ।" राय के अनुसार, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड भौतिक परमाणुओं के संघात का परिणाम है, जिसका कोई रचयिता नहीं है । आत्मा के विषय में राय लिखते है कि “आत्मा की
परिकल्पना निराधार है क्योंकि प्राणी की मृत्यु के पश्चात उसका कुछ भी शेष नहीं
रहता जिसे आत्मा कहा जाए । वह मात्र प्राणी की चेतना थी जो भौतिक परमाणुओं से
संघात से उत्पन्न हुई थी” ।
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