महाभारत ( Mahabharat ) का राजधर्म

महाभारत ( Mahabharat ) का राजधर्म 

महाभारत ( Mahabharat ) का राजधर्म 

    महाभारत के अनुशासन पर्व में राजधर्म का विस्तृत विवेचन मिलता है। महाभारत में राजा के लिए एक अत्यन्त विशुद्ध अचारसंहित दी गई है। मन, कर्म और वाणी से भी पातक से मुक्त आत्मसाक्षी तथा धर्मशील राजा रहने से प्रजा अनावृष्टि, रोग, उपद्रव आदि से मुक्त तथा अपने अपने कर्तव्य में परायण होती है। ऐसे ही राजा के राज्य में धन, धर्म, यश तथा कीर्ति में वृद्धि होती है। कर व्यवस्था में राजा को षड्भाग लेना का वर्णन है। दान-धर्म राजा के लिए आवश्यक अधिष्ठान समझे गए है। महाभारत में प्रजा की रक्षा और उनका पालन करना ही राजा का प्रमुख राजधर्म समझ गया है। महाभारत में कहा गया है कि जो राजा प्रजा के प्राणों और सम्पत्ति की रक्षा का दायित्व नहीं लेता उसे पागल कुत्ते की तरह मार देना चाहिए।   

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