कौटिल्य ( Chanakya ) की राज्य की अर्थव्यवस्था

कौटिल्य ( Chanakya ) की राज्य की अर्थव्यवस्था 

कौटिल्य ( Chanakya ) की राज्य की अर्थव्यवस्था 

    कौटिल्य ने अर्थव्यवस्था और राजनीति व्यवस्था को एक ही सिक्के के दो पहलू माना है। राजव्यवस्था का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य अर्थव्यवस्था को सुव्यवस्थित व गतिशील बनाए रखना है। राजा को कर संग्रह पर ध्यान देना चाहिए लेकिन कर का संग्रह मनमाने एवं अन्यायपूर्ण ढंग से नहीं करना चाहिए। कौटिल्य ने अर्थव्यवस्था में कृषि को प्रमुख रूप में रखा है साथ ही उद्योग-धंधों का भी वर्णन किया है। कौटिल्य कर संग्रह में भी वर्णव्यवस्था को ध्यान में रखता है और ब्रह्मण वर्ण को नौका शुल्क से मुक्त रखता है। साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी ब्रह्मण से चन्दा नहीं लेने की बात की है। कौटिल्य राजा को सुझाव देता है कि वह विशेष अवसरों पर मेलों का आयोजन कराएं जिससे सामाजिक समरसता के साथ-साथ राज्य की आय में भी वृद्धि होगी। कौटिल्य का मत था कि ‘कोष-विहीन राजा का शीघ्र हि पतन होता है’। कौटिल्य ने छः प्रकार के ग्रामीण करो का वर्णन किया है-

  1. परिहारिक – ये ग्राम कर मुक्त होते थे।
  2. हिरण्य – ये ग्राम स्वर्ण मुद्रा में कर चुकाया करते थे।
  3. आयुधीप – ये ग्राम कर के रूप में सैनिक देते थे।
  4. कुप्य – ये ग्राम कच्चे माल के रूप में कर देते थे।
  5. विष्टि – ये ग्राम कार्य के रूप में कर देते थे।
  6. कर प्रतिकर – ये ग्राम घी, दूध, तेल, चमड़ा आदि कर के रूप में देते थे।

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