![]() |
चार्वाक दर्शन (Charvaka Philosophy) |
चार्वाक दर्शन (Charvaka Philosophy)
चार्वाक दर्शन
यावजीवं सुखं जीवेन्नास्ति
मृत्योरगोचरः ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ?
बृहस्पति के मत को मानने वाले, नास्तिकों के शिरोमणि
(प्रधान) चार्वाक के मत का खण्डन करना कठिन है, क्योंकि प्रायः संसार में सभी प्राणी इसी लोकोक्ति पर
चलते हैं - 'जबतक जीवन रहे सुख से जीना चाहिए, ऐसा कोई नहीं जिसके पास मृत्यु न जा सके, जब शरीर एक
बार जल जाता है तब इसका पुनः आगमन कैसे हो सकता है? सभी लोग
नीतिशास्त्र और कामशास्त्र के अनुसार अर्थ (धन-संग्रह) और काम (भोग-विलास) को ही
पुरुषार्थ समझते हैं, परलोक की बात को स्वीकार नहीं करते हैं
तथा चार्वाक-मत का अनुसरण करते हैं। इस तरह मालूम होता है [बिना उपदेश के ही लोग
स्वभावतः सर्वदर्शनसंग्रहे चार्वाक की ओर चल पड़ते हैं] इसलिए चार्वाक-मत का दूसरा
नाम अर्थ के अनुकूल ही है-लोकायत (लोक = संसार में, आयत =
व्याप्त, फैला हुआ)।
विशेष - शङ्कर, भास्कर तथा अन्य टीकाकार
लोकायतिक नाम देते हैं। लोकायतिक-मत चार्वाकों का कोई सम्प्रदाय है। चार्वाक =
चारु (सुन्दर), वाक (वचन)। मनुष्यों को स्वाभाविक-प्रवृत्ति
चार्वाक-मत की ओर ही है। बाद में उपदेशादि द्वारा वे दूसरे दर्शनों को मान्यता
प्रदान करते हैं। दूसरे जीव भी (पशु-पक्षी आदि) चार्वाक (= स्वाभाविक-धर्म एवं
दर्शन) के पृष्ठपोषक हैं। ग्रीक-दर्शन के एरिस्टिपस एवं एपिक्युरस इसी सम्प्रदाय
के समान अपने दर्शनों की अभिव्यक्ति करते हैं।
'लोकायत' शब्द पाणिनि के उक्थगण में
मिलता है जिसमें 'लोकायतिक' शब्द बनाने
का विधान है। षड्दर्शन-समुच्चय के टीकाकार गुणरत्न का कहना है कि जो पुण्य-पापादि
परोक्ष वस्तुओं का चर्वण (नाश) कर दे वही चार्वाक है। काशिका-वृत्ति में चार्वी
नामक लोकायतिक-आचार्य का भी उल्लेख है।
इस मत के प्रवर्तक आचार्य बृहस्पति को माना जाता है। जयराशि
भट्ट का तत्वोंपप्लवसिंह नामक ग्रन्थ को छोड़कर इस मत को कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ नहीं
है।
No comments:
Post a Comment