जैन दर्शन में द्रव्य / Matter in Jain Philosophy
जैन दर्शन में द्रव्य / Matter in Jain Philosophy
जैन दर्शन में द्रव्य / Matter in Jain Philosophy
जैन दर्शन के अनुसार “द्रव्य वह है जिसके गुण और पर्याय नामक
धर्म हो – गुणपर्यायवत् द्रव्यम्”। जैन दर्शन में द्रव्य को सर्वप्रथम दो भेद में
व्यक्त किया गया है – अस्तिकाय और अनस्तिकाय। अस्तिकाय का अर्थ है –विस्तार युक्त।
सत्तायुक्त होने ‘अस्ति’ और शरीर के समान विस्तार युक्त होने से ‘काय’। अस्तिकाय
द्रव्य पाँच है – जीव, पुद्गल, आकाश, धर्म और अधर्म। इनमें जीव के अतिरिक्त शेष
चार द्रव्य अजीव है। काल को एकमात्र अनस्तिकाय तथा एकप्रदेशव्यापी द्रव्य माना गया
है। जैन दर्शन में आकाश को नित्य एवं अनन्त माना गया है। आकाश का प्रत्यक्ष नहीं
होता। इसके दो भेद किए गए है – लोकाकाश और अलोकाकाश। जिनमें द्रव्यों की स्थति
होती है उसे लोकाकाश और जहाँ द्रव्य नहीं है उसे अलोकाकाश कहते है।
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