सम्पत्ति का अधिकार ( Right to property )

सम्पत्ति का अधिकार ( Right to property ) 

सम्पत्ति का अधिकार ( Right to property ) 

    सम्पत्ति से तात्पर्य ऐसे वस्तु से है जिस पर कोई व्यक्ति या समूह स्वामित्व रखता है तथा उसे रखने, नष्ट करने, बेचने या किसी को उपहार देने का दावा रखता है। उपभोग के आधार पर सम्पत्ति दो प्रकार की होती है –

  1. चल सम्पत्ति – वह सम्पत्ति जिसे व्यक्ति अपने उपभोग के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा सकता है, चल सम्पत्ति कहलाती है। जैसे – मुद्रा, आभूषण, सोना, चांदी आदि ।
  2. अचल सम्पत्ति – वह सम्पत्ति जीसे व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जा सकता, अचल सम्पत्ति कहलाती है। जैसे – भूमि, भवन, उद्यान आदि ।

संपत्ति का अधिकार (Right to Property)

    संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया था। 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(A) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा इसके बावजूद भी राज्य किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन करके ही वंचित कर सकता है।

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