स्वदेशी ( Swadeshi )
स्वदेशी ( Swadeshi ) |
स्वदेशी ( Swadeshi )
स्वदेशी का अर्थ – अपने देश में निर्मित वस्तु उत्पादन के
उपभोग से है। भारत में स्वदेशी भाव का उद्भव बंगाल विभाजन के विरोध में हुआ था।
स्वदेशी भाव से उत्पन्न यह आन्दोलन वर्ष 1905 से 1911 तक चला। इस आन्दोलन के
प्रमुख विचारक रविन्द्रनाथ ठाकुर, लाल लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, अरविन्द घोष
एवं वीर सावरकर थे। इस स्वदेशी आन्दोलन से ही वर्ष 1906 के बाद हिन्दी का स्वभाषा
के रूप में मार्ग प्रशस्त हुआ। मदन मोहन मालवीय जी ने स्वदेशी की भावना से ही काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की और हिन्दी को पाठ्यक्रम के रूप में शामिल
किया, साथ ही अभ्युदय, मर्यादा और हिन्दुस्तान नामक समाचार पत्रों का सम्पादन भी
किया।
स्वदेशी आन्दोलनों के विषय में महात्मा गाँधी ने कहा था कि
‘भारत का वास्तविक शासन बंगाल विभाजन से उपरान्त शुरू हुआ। जीवन के प्रत्येक
क्षेत्र – उद्योग, शिक्षा, संस्कृति, साहित्य और फैशन में स्वदेशी की भावना का
संचार हुआ। हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के किसी भी चरण में इतनी अधिक सांस्कृतिक
जागृति देखने को नहीं मिलती जितनी स्वदेशी आन्दोलनों के दौरान मिलती है’। गाँधी जी
कहते है –“स्वदेशी की भावना का अर्थ हमारी वह भावना है जो हमें दूर को छोड़कर समीपवर्ती
परिवेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है। महात्मा गाँधी ने इसी स्वदेशी भावना
को ‘स्वराज’ कहा था।
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