सत्याग्रह ( Satyagraha )

सत्याग्रह ( Satyagraha ) 

 सत्याग्रह ( Satyagraha ) 

    गाँधी जी के अनुसार, ‘अपने विरोधियों को दुःखी बनाने के बजाए स्वयं अपने पर दुःख डालकर सत्य की विजय प्राप्त करना ही सत्याग्रह है’। गाँधी जी कहते है कि निर्बल व्यक्ति का प्रतिरोध निष्क्रिय होता है परंतु सत्याग्रह निष्क्रिय प्रतिरोध नहीं है क्योंकि “निर्बल सत्याग्रह हो ही नहीं सकता”। गाँधी जी का सत्याग्रह अनेक रूपों में सक्रिय रहा जिनका वर्णन इस प्रकार है –

  1. असहयोग आन्दोलन – वर्ष 1919-20 में गाँधी जी द्वारा घोषणा की गई कि भारतीय किसी भी रूप में ब्रिटिश सरकार का सहयोग नहीं करेंगे इसी को असहयोग आन्दोलन कहा गया।
  2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन – वर्ष 1930 में ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर लगे प्रतिबन्ध के विरुद्ध गाँधी जी ने अहिंसा पूर्वक इस कानून का उलंघन किया और दांडी यात्रा की इसी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन कहते है।
  3. हिजरत – आत्मसम्मान की दृष्टि से स्वयं निवास स्थान छोड़ने को हिजरत कहते है। वर्ष 1928 में बारदोली और वर्ष 1939 में बिठ्ठलगढ़ और लिम्बाड़ी की जनता को गाँधी जी द्वारा यह सुझाव दिया गया था।
  4. अनशन – अतमशुद्धि और अत्याचारियों के हृदय परिवर्तन के लिए अहिंसा पूर्वक स्वेच्छा से आध्यात्मिक बल से सम्पन्न व्यक्ति द्वारा किया गया अन त्याग अनशन कहलाता है। गाँधी जी के अनुसार इसे उग्र अस्त्र मानते थे और कहते थे कि इस अस्त्र का प्रयोग हर किसी व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि आध्यात्मिक बल से सम्पन्न व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए क्योंकि इसके सफल प्रयोग के लिए मानसिक शुद्धता, अनुशासन और नैतिक मूल्यों में आस्था की अत्यधिक आवश्यकता होती है।

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