सर्वोदय ( Sarvodaya )

सर्वोदय ( Sarvodaya ) 

सर्वोदय ( Sarvodaya )  

    सर्वोदय एक सामाजिक आदर्श का संप्रत्यय है, जिसका अर्थ है – “सबका उदय, सबका उत्कर्ष या विकास”। सर्वोदय का विचार हमारी संस्कृति का सनातन अंग है जिसका प्रमाण ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत’। अर्थात - सभी प्रसन्न रहें, सभी स्वस्थ रहें, सबका भला हो, किसी को भी कोई दुख ना रहे। जैनाचार्य समंतभद्र ने कहा है – ‘सर्वापदा मन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तथैव’ । वर्तमान काल में गाँधी जी को रस्किन की पुस्तक ‘अन्टु दिस लास्ट’ से प्रेरणा मिली और उन्होंने उस पुस्तक का अनुवाद किया । इस अनुवादित पुस्तक का नाम गाँधी जी ने सर्वोदय रखा । रस्किन की पुस्तक की तीन बातें मुख्य है –

  1. व्यक्ति का श्रेय समष्टि के श्रेय में ही निहित है ।
  2. वकील का काम हो चाहे मोची का, दोनों का मूल्य समान है। इस समानता का कारण यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यवसाय द्वारा अपनी आजीविका चलाने का समान अधिकार है।
  3. शारीरिक श्रम करने वाले का जीवन जी सच्चा और सर्वोत्कृष्ट जीवन है।

    इस प्रकार गाँधी जी ने एक सामाजिक आदर्श का विचार प्रस्तुत किया जिसे सर्वोदय कहा गया ।  गाँधी जी की मृत्यु के बाद उनके अनुयायी तथा सहकर्मी विनोबा भावे ने इस विचार को विस्तारित किया और अपने अनेक कार्यकर्मों के द्वारा सर्वोदय की विचार का एक मूर्त रूप प्रस्तुत किया।

------------


Comments

Popular posts from this blog

वेदों का सामान्य परिचय General Introduction to the Vedas

वैदिक एवं उपनिषदिक विश्व दृष्टि

मीमांसा दर्शन में अभाव और अनुपलब्धि प्रमाण की अवधारणा