Tuesday, September 28, 2021

चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचार Pramana Mimamsa in Charvak Philosophy

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचार Pramana Mimamsa in Charvak Philosophy

चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचार Pramana Mimamsa in Charvak Philosophy

यह दर्शन प्रत्यक्ष को एकमात्र प्रमाण मानता है, इसके अतिरिक्त सभी का खण्डन करता है। यह पाँच तत्त्वों

(पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु एवं आकाश) में केवल चार तत्त्वों (आकाश तत्त्व को छोड़कर) को ही मानता है।

प्रत्यक्षमात्र प्रमाण

चार्वाक का सम्पूर्ण दर्शन उसके प्रमाण विचार पर आधारित है। चार्वाक ने यथार्थ ज्ञान के एकमात्र प्रमाण के रूप में प्रत्यक्ष को स्वीकार किया है।चार्वाक की मान्यता है कि एकमात्र प्रत्यक्ष के द्वारा ही हमें अभ्रान्त एवं निश्चयात्मक ज्ञान प्राप्त होता है। चार्वाक का यह विचार अन्य दार्शनिक विचारों से भिन्न है, क्योंकि अन्य दार्शनिकों ने प्रत्यक्ष के अतिरिक्त कम-से-कम अनुमान को तो अवश्य ही प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है।

चार्वाक के अनुसार, प्रत्यक्ष के द्वारा हमें जो ज्ञान प्राप्त होता है, चूँकि वह अभ्रान्त एवं निश्चयात्मक होता है, अत: प्रत्यक्ष ज्ञान को प्रमाणित करने के लिए किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए कहा गया है कि प्रत्यक्षे किम् प्रमाणम्।

चार्वाक ने प्रत्यक्ष ज्ञान को एकमात्र प्रमाण के रूप में स्वीकार करने के अतिरिक्त अन्य सभी प्रमाणों-उपमान, अनुमान शब्द प्रमाण आदि का खण्डन किया है। चार्वाक का यह खण्डन प्रत्यक्ष प्रमाण की महत्ता में वृद्धि करता है। प्रत्यक्ष प्रमाण के अनुसार, केवल इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान ही प्रामाणिकता की कोटि में आता है। इन्द्रियों एवं वस्तु के संसर्ग से उत्पन्न ज्ञान प्रामाणिक होता है, जिसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस समस्त दृश्यमान जगत का ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा ही होता है। अत: चार्वाक इन्द्रिय ज्ञान को ही यथार्थ ज्ञान मानता है। प्रत्यक्ष ज्ञान इन्द्रियों से प्राप्त होता है। पाँच ज्ञानेन्द्रियों-आँख, नाक, कान, जीभ त्वचा से क्रमश: दृश्य, गन्ध, श्रवण, स्वाद स्पर्श का ज्ञान होता है। यही प्रत्यक्ष ज्ञान है जो सन्देह रहित निश्चित है।

---------------

चार्वाक दर्शन एवं इसका इतिहास Charvak philosophy and its history

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

चार्वाक दर्शन एवं इसका इतिहास Charvak philosophy and its history

चार्वाक दर्शन एवं इसका इतिहास Charvak philosophy and its history

चार्वाक दर्शन एक नास्तिक अनीश्वरवादी दर्शन है। यह दर्शन ईश्वर के साथ-साथ वेदों इत्यादि को भी नहीं मानता। चार्वाक दर्शन के संस्थापक के रूप में बृहस्पति आचार्य को माना जाता है। चार्वाक बृहस्पति आचार्य के शिष्य थे, जिन्होंने इस दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। जिसके चलते चार्वाक दर्शन प्रसिद्ध हुआ एवं इसी नाम से जाना जाने लगा।

प्राचीन भारतीय दर्शन में जड़वाद के लिए चार्वाक शब्द का प्रयोग होता था। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि चार्वाक एक ऋषि थे, जिन्होंने जड़वाद का प्रतिपादन किया और उन्हीं के अनुयायी चार्वाक कहलाए। इस प्रकार जड़वाद का दूसरा नाम चार्वाक हो गया। कुछ अन्य विद्वान् मानते हैं कि चार्वाक जैसा कोई व्यक्ति नहीं था।

चार्वाक शब्द चर्च धातु से बना है, जिसका अर्थ चबाना या भोजन करना है। चूँकि चार्वाकी खाने-पीने, ऐश्वर्य-आनन्द आदि पर बल देते थे, इसी कारण चार्वाक नाम पड़ा। कुछ अन्य विद्वान् मानते हैं कि चार्वाकों के वचन बहुत मीठे होते थे, इसी कारण ये चार्वाक कहलाए। चारु का अर्थ ही सुन्दर होता है।

चार्वाक दर्शन का सबसे प्राचीन नाम लोकायतन है, क्योंकि यह दर्शन लोगों में आयत अर्थात् फैला हुआ है, इसी कारण जड़वाद को लौकायतिक भी कहते हैं। इस दर्शन को लोकायतनवादी, रसवादी, अनीश्वरवादी, नास्तिकभौतिकवादी, भोगवादी आदि दर्शनों के नाम से जानते हैं।

-----------------------------------

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...